महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 68 श्लोक 19-37

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अष्टषष्टितम (68) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 19-37 का हिन्दी अनुवाद

यदि राजा रक्षा न करे तो धनवानोंको प्रतिदिन वध या बनधनका क्लेश उठाना पड़े और किसी भी वस्तुको वे अपनी न कह सकें। यदि राजा प्रजाका पालन न करे तो अकालमें ही लोगों की मृत्यु होने लगे, यह समस्त जगत् डाकुओंके अधीन हो जाय और (पाप के कारण) घोर नरकमें गिर जाय। यदि राजा पालन न करे तो व्यभिचानसे किसीको घृणा न हो, खेती नष्ट हो जाय, व्यापार चैपट हो जाय, धर्म डूब जाय और तीनों वेदोंका कहीं पता न चले। यदि राजा जगत्की रक्षा न करे तो विधिवत् पर्याप्त दक्षिणाओंसे युक्त यज्ञोंका अनुष्ठान बंद हो जाय, विवाह न हो और सामाजिक कार्य रूक जायँ। यदि राजा पशुओंका पालन न करे तो साँड़ गायोंमें गर्भाधान न करें, दूध-दहीसे भरे हुए घडे़ या मटके कभी महे न जायँ और गोशाला नष्ट हो जायँ। यदि राजा रक्षा न करे तो सारा जगत् भयभीत, उद्विग्रचित, हाहाकारपरायण तथा अचेतस हो क्षणभरमें नष्ट हो जाय। यदि राजा पालन न करे तो उनमें ज़्िधिपूर्वक दक्षिणाओंसे युक्त वार्षिक यज्ञ बेखटके न चल सकें। यदि राजा पालन न करे तो विद्या पढ़कर स्नातक हुए ब्रह्मचर्य-व्रतका पालन करनेवाले और तपस्वी तथा ब्राह्मण लोग चारों वेदोंका अध्ययन छोड दें। यदि राजा पालन न करे तो मनुष्य हताहत होकर धर्मका सम्पर्क छोड़ दें और चोर घरका मालमत्ता लेकर अपरे शरीर और इन्द्रियोंपर आँच आये बिना ही सकुशल लौट जायँ। यदि राजा पालन न करे तो चोर और लुटेरे हाथ में रखी हुई वस्तुको भी हाथ से छीन ले जायँ सारी मर्यादाएँ टुट जायँ और सब लोग भय से पीडि़त हो चारों ओर भागते फिरें । यदि राजा पालन न करे तो सब ओर अन्याय एवं अत्याचार फैल जाय वर्णसंकर संतानें पैदा होने लगें और समूचे देश में अकाल पड़। राजा से रक्षित हुए मनुष्य सब ओर से निर्भय हो जाते है और अपनी इच्छा के अनुसार घर के दरवाजे खोलकर सोते है। यदि धर्मात्मा राजा भलीभाँति पृथ्वी की रक्षा न करे तो कोई भी मनुष्य गाली -गलौज अथवा हाथ से पीट जाने का अपमान कैसे सहन करे। यदि पृथ्वी का पालन करने वाला राजा अपने राज्य की रक्षा करता है तो समस्त आभूषणों से विभूषित हुई सुन्दरी स्त्रियाँ किसी पुरूष को साथ लिये बिना भी निर्भय होकर मार्ग से आती-जाती है। जब राजा रक्षा करता है तब सब लोग धर्म का ही पालन करते है कोई किसी की हिंसा नहीं करते और सभी एक दुसरे -पर अनुग्रह रखते है। जब राजा रक्षा करता है तब तीनों वर्णोके लोग नाना प्रकार के बडे-बडे यज्ञों का अनुष्ठान करते है और मनोयोगपूर्वक विघाध्ययनमें लगे रहते है। खेती आदी समूचित जीविका की व्यवस्था ही हेतुभूत त्रयी विघासे ही सदा जगत् का धारण -पोषण होता है जब राजा प्रजा की रक्षा करता है तभी वह सब कुछ ठीक ढंग से चलता रहता है। जब राजा विशाल सैनिक -शक्ति के सहयोग से भारी भार उठाकर प्रजाकी रक्षा का भार वहन करता है तब यह सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न होता है। जिसके न रहने पर सब ओर से समस्त प्राणियों का अभाव होने लगता है और जिसके रहने पर सदा सबका अस्तित्व बना रहता है, उस राजा का पूजन ( आदर-सत्कार) कौन नहीं करेगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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