महाभारत श्रवण विधि श्लोक 1-21
महाभारत श्रवण विधि:
- माहात्म्य, कथा सुनने की विधि और उसका फल
जनमेजय ने पूछा – भगवान ! विद्वानों को किस विधि से महाभारत का श्रवण करना चाहिये ? इसके सुनने से क्या फल होता है? इसकी पारणा के समय किन-किन देवताओं का पूजन करना चाहिये? भगवन ! प्रत्येक पर्व की समाप्ति पर क्या दान देना चाहिये? और इस कथा का वाचक कैसा होना चाहिये? यह सब मुझे बताने की कृपा कीजिये। वैशम्पायन जी ने कहा- राजेन्द्र ! महाभारत सुनने की जो विधि है और उसके श्रवण से जो फल होता है, जिसके विषय में तुमने मुझसे जिज्ञासा प्रकट की है, वह सब बता रहा हूं; सुनो। भूपाल ! स्वर्ग के देवता भगवान की लीला में सहायता करने के लिये पृथ्वी पर आये थे और इस कार्य को पूरा करके वे पुन: स्वर्ग मे जा पहुंचे। अब मैं इस भूतल पर ऋषियों और देवताओं के प्रादुर्भाव के विषय में प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें जो कुछ बताता हूं, उसे एकाग्रचित्त होकर सुनो। भरतश्रेष्ठ ! यहां महाभारत में रूद्र, साध्य, सनातन विश्व देव, सूर्य, अश्विनिकुमार, लोकपाल, महर्षि, गुह्मक, गन्धर्व, नाग, विद्याधर, सिद्ध धर्म, स्वयम्भू ब्रह्मा, श्रेष्ठ मुनि कात्यायन, पर्वत, समुद्र, नदियां, अप्सराओं के समुदाय, ग्रह, संवत्सर, अयन, ऋतु, सम्पूर्ण चराचर जगत, देवता और असुर-ये सब-के सब एकत्र हुए देखे जाते हैं। मनुष्य घोर पातक करने पर भी उन सबकी प्रतिष्ठा सुनकर तथा प्रतिदिन उनके नाम और कर्मों का कीर्तन करता हुआ उससे तत्काल मुक्त हो जाता है। मनुष्य अपने मन को संयम में रखते हुए बाहर-भीतर से शुद्ध हो महाभारत में वर्णित इस इतिहास को क्रमश: यथावत रूप से सुनकर इसे समाप्त करने के पश्चात इनमें मारे गये प्रमुख वीरों के लिये श्राद्ध करे। भारत ! भरत भूषण ! महाभारत सुनकर श्रोता अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को भक्ति भाव से नाना प्रकार के रत्न आदि बडे़-बडे़ दान दे। गौएं, कांसी के दुग्ध पात्र, वस्त्र भूषणों से विभूषित और सम्पूर्ण मनोवांच्छित गुणों से युक्त कन्याएं, नाना प्रकार के यान, विचित्र भवन, भूमि वस्त्र, सुवर्ण, वाहन, घोडे़, मतवाले हाथी, शयया, शिबिकाएं, सजे-सजाये रथ तथा घर में जो कोई भी श्रेष्ठ वस्तु और महान धन हो, वह सब ब्राह्मणों को देने चाहिये । स्त्री-पुत्रों सहित अपने शरीर को भी उनकी सेवा में लगा देना चाहिये। पूर्ण श्रद्धा के साथ क्रमश- कथा सुनते हुए उसे अन्त तक पूर्ण रूप से श्रवण करना चाहिये। यथाशक्ति श्रवण के लिये उद्यत रहकर मन को प्रसन्न रखे । ह्रदय में हर्ष से उल्लसित हो मन में संशय या तर्क-वितर्क न करे।। सत्य और सरलता के सेवन में संलग्न रहे। इन्द्रियों का दमन करे, शुद्ध एवं शौचा चार से सम्पन्न रहे। श्रद्धालु बना रहे और क्रोध को काबू में रखे । ऐसा श्रोता को जिस प्रकार सिद्धि प्राप्त होती है, वह बताता हूं; सुनो। जो बाहर-भीतर से पवित्र, शीलवान सदाचारी, शुद्ध वस्त्र धारण करने वाला, जितेन्द्रिय, संस्कार सम्पन्न, सम्पूर्ण शास्त्रों का तत्वज्ञ, श्रद्धालु, दोषदृष्टि रहित, रूपवान, सौभाग्य शाली, मन को वश में रखने वाला, सत्य वादी और जितेन्द्रिय हो, ऐसे विद्धान पुरूष को दान और मान से अनुगृहीत करके वाचक बनाना चाहिये। कथा वाचक को न तो बहुत रूक-रूक कर कथा बांचनी चाहिये। मीठे स्वर से भावार्थ समझा कर कथा कहनी चाहिये।
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