महाभारत सभा पर्व अध्याय 11 श्लोक 49-62
एकादश (11) अध्याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)
इसी प्रकार राक्षस, पिशाच, दानव, गुह्यक, नाग, सुपर्ण तथा श्रेष्ठ पशु भी वहाँ पितामह ब्रह्मा जी की उपासना करते हैं । स्थावर और जंगम महाभूत, देवराज इन्द्र, वरूण, उस सभा में पधारते हैं। राजेन्द्र ! स्वामी कार्तिकेय भी वहाँ उपस्थित होकर सदा ब्रह्म जी की सेवा करते हैं । भगवान् नारायण, देवर्षिगण, बालखिल्य ऋषि तथा दूसरे अयोनिज और योनिज ऋषि उस सभा में ब्रह्मा जी की आराधना करते हैं। नरेश्वर ! संक्षेप में यह समझ लो कि तीनों लोकों में स्थावर- जंगम भूतों के रूप में जो कुछ भी दिखायी देता है, वह सब मैंने उस सभा में देखा था। पाण्डु नन्दन ! अट्ठासी हजार ऊधर्वरेता ऋषि और पचाप्स संतानवान् महर्षि उस सभा में उपस्थित होते हैं। वे सब महर्षि तथा सम्पूर्ण देवता वहाँ इच्छानुसार ब्रह्माजी का दर्शन करके उन्हें मस्तक झुकाकर प्रणाम करते और आज्ञा लेकर जैसे आये होते हैं, वैसे ही चले जाते हैं ।
अगाध बुद्धि वाले दयालु लोक पितामह ब्रह्मा जी अपने यहाँ आये हुए सभी महाभाग अतिथियों- देवता, दैत्य, नाग, पक्षी, यक्ष, सुपर्ण, कालेय, गन्धर्व तथा अप्पसराओं एवं सम्पूर्ण भूतों से यथा योग्य मिलते हैं और उन्हें अनुगृहीत करते हैं। मनुजेश्वर ! अमित तेजस्वी विश्वत्मा स्वयम्भू उन सब अतिथियों को अपना कर उन्हें सान्त्वना देते, उनका सम्मान करते, उनके प्रयोजन की पूर्ति करके उन सब को आवश्यकता तथा रूचि के अनुसार भोग सामग्री प्रदान करते हैं। तात भारत ! इस प्रकार वहाँ आने- जाने वाले लोगों से भरी हुई वह सभा बड़ी सुखदायिनी जान पड़ती है।
नृपश्रेष्ठ ! वह सभा सम्पूर्ण तेज से सम्पन्न, दिव्य तथा ब्रह्मर्षियों के समुदाय से सेवित और पापरहित एवं ब्राह्मी श्री से उद्भासित और सुशोभित होती रहती है । वैसी उस सभा का मैंने दर्शन किया है । जैसे मनुष्य लोक में तुम्हारी यह सभा दुर्लभ है, वैसे ही सम्पूर्ण लोकों में तुम्हारी यह सभा दुर्लभ है, वैसे ही सम्पूर्ण लोकों में ब्रह्मा जी की सभा परम दुर्लभ है । भारत ! ये सभी सभाएँ मैंने पूर्व काल से देव लोक में देखी हैं ! मनुष्य लोक में तो तुम्हारी यह सभा ही सर्वश्रेष्ठ है।
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