महाभारत सभा पर्व अध्याय 44 श्लोक 18-38

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चतुश्वत्वारिंश (44) अध्‍याय: सभा पर्व (शिशुपालवध पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: चतुश्वत्वारिंश अध्याय: श्लोक 18-38 का हिन्दी अनुवाद

धनुर्धरों में श्रेष्ठ पुरुष रत्न महाबली रुक्मी की अवहेलना करके तुम केशव की प्रशंसा के गीत क्यों गाते हो? महापराक्रमी भीष्म, भूमिपाल दन्तवक्र, भगदत्त, यूपकेतु, जयत्सेन, मगधराज सहदेव, विराट, द्रुपद, शकुनि, बृहद्वल, अवन्ती के राजकुमार विन्द-अनुविन्द, पाण्ड्यनरेश, श्वेत, उत्तर, महाभाग शंख, अभिमानी वृषसेन, पराक्रमी एकलव्य तथा महारथी एवं महाबली कलिंग नरेश की अवहेलना करके कृष्ण की प्रशंसा क्यों कर रहे हो? भीष्म! यदि तुम्हारा मन सदा दूसरों की स्तुति करने में ही लगता है तो इन शल्य आदि श्रेष्ठ राजाओं की स्तुति क्यों नही करते? भीष्म! तुमने पहले बड़े-बूढ़े धर्मोपदेशकों के मुख से यदि यह धर्मसंगत बात, जिसे मैं अभी बताऊँगा नही सुनी, तो मैं क्या कर सकता हूँ? भीष्म! अपनी निन्दा, अपनी प्रशंसा, दूसरी की निन्दा और दूसरे की स्तुति ये चार प्रकार के कार्य पहले के श्रेष्ठ पुरुषों ने कभी नही किये हैं। भीष्म! जो स्तुति के सर्वथा अयोग्य है, उसी केशव की तुम मोहवश सदा भक्तिभाव से जो स्तुति करते रहते हो, उसका कोई अनुमोदन नहीं करता। दुरात्मा कृष्ण तो राजा कंस का सेवक है, उनकी गौओं का चरवाहा रहा है। तुम केवल स्वार्थवश इसमें सारे जगत का समविश कर रहे हो। भारत! तुम्हारी बुद्धि ठिकाने पर नहीं आ रही है। मैं यह बात पहले ही बात चुका हूँ कि तुम भूलिंग पक्षी के समान कहते कुछ और करते कुछ हो। भीष्म! हिमालय के दूसर भाग में भूलिंग नाम से प्रसिद्ध एक चिड़िया रहती है। उसके मुख से सदा ऐसी बात सुनायी पड़ती है, जो उसके कार्य विपरीत भाव की सूचक होने के कारण अत्यन्त निन्दनीय जान पड़ती है। वह चिड़िया सदा यही बोला करती है ‘मा साहसमू’ (अर्थात साहस का काम न करो), परंतु वह स्वयं ही भारी साहस का काम करती हुई भी यह नहीं समझ पाती। भीष्म! वह मूर्ख चिड़िया मांस खाते हुए सिंह के दाँतों में लगे हुए मांस के टुकड़े को अपनी चोंच से चुगती रहती है। नि:संदहे सिंह की इच्छा से ही वह अब तक जी रही है। पापी भीष्म! इसी प्रकार तुम भी सदा बढ़-बढ़कर बातें करते हो। भीष्म! नि:संदेह तुम्हारा जीवन इन राजाओं की इच्छा से ही बचा हुआ है, क्योंकि तुम्हारे समान दूसरा कोई राजा ऐसा नहीं है, जिसके कर्म सम्पूर्ण जगत से द्वेष करने वाले हों। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! शिशुपाल का यह कटु वचन सुनकर भीष्मजी ने शिशुपाल के सुनते हुए यह बात कही- ‘अहो! शिशुपाल के कथनानुसार मैं इन राजाओं की इच्छा पर जी रहा हूँ, परंतु मैं तो इन समस्त भूपालों को तिनके बराबर भी नहीं समझता’। भीष्म के ऐसा कहने पर बहुत से राजा कुपित हो उठे। कुछ लोगों को हर्ष हुआ तथा कुछ भीष्म की निन्दा करने लगे। कुछ महान् धनुर्धर नरेश भीष्म की वह बात सुनकर कहने लगे- ‘यह बूढ़ा भीष्म पापी और घमण्डी है, अत: क्षमा के योग्य नहीं है। ‘राजाओं! क्रोध में भरे हुए हम सब लोग मिलकर इस खोटी बुद्धिवाले भीष्म को पशु की भाँति गला दबाकर मार डालें अथवा घास फूस की आग में इसे जीते जी जला दें’। उन राजाओं की ये बातें सुनकर कुरुकुल के पितामह बुद्धिमान भीष्मजी फिर उन्हीं नरेशों से बोले।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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