महाभारत सभा पर्व अध्याय 52 श्लोक 44-49
द्विपन्चाशत्तम (52) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
मैंन युधिष्ठिर के यज्ञ मण्डप में सभी वर्ण के लोगों में से किसी को ऐसा नही देखा, जो खा पीकर आभूषणों से विभूषित और सत्कृत न हुआ हो । राजा युधिष्ठिर घर में बसने वाले जिन अठ्ठासी हजार स्न्नातकों का भरण भोषण करते हैं, उनमें से प्रत्येेक की सेवा में तीस तीस दास दासी उपस्थित रहते हैं। वे सब ब्राह्मण भोजन से अत्यन्त तृप्त एवं संतुष्ट हो राजा युधिष्ठिर को उनके (काम-क्राधादि) शत्रुओं के विनाश के लिये आशीर्वाद देते हैं। इसी प्रकार युधिष्ठिर के महल में दूसरे दस हजार ऊर्ध्वरेता यति भी सोने की थालीयों में भोजन करते हैं। राजन्! उस यज्ञ में द्रौपदी प्रतिदिन स्वयं पहले भोजन न करके इस बात की देखभाल करती थी कि कुबड़े और बौनों से लेकर सब मुनष्यों में किसने खाया है और किसने अभी तक भोजन नहीं किया है। भारत! कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर को दो ही कुलके लोग कर नहीं देते थे। सम्बन्ध के कारण पांचाल और मित्रता के कारण अन्धक एवं वृष्णि।
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