यूजिन ग्लैडस्टोन ओ' नील

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लेख सूचना
यूजिन ग्लैडस्टोन ओ' नील
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 298
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक कैलाशचंद्र शर्मा

ओ' नील, यूजिन ग्लैडस्टोन (1888-1953 ई.) प्रख्यात अमरीकी नाटककार, कवि तथा उपन्यासकार। ओ'नील का जन्म 16 अक्टूबर, 1888 ई. को न्यूयार्क नगर के ब्रॉडवे स्थित एक होटल में हुआ था। उनके पिता जेम्स ओ' नील (1847-1920 ई.) विख्यात अभिनेता थे लेकिन उन्हें अत्यधिक शराब पीने की लत पड़ गई थी। उनकी माता भी भावनात्मक दृष्टि से जर्जर थीं और लगातार नशीलें पदार्थो का सेवन किया करती थीं। ओ'नील ने अपने जीवन के प्रथम सात वर्ष गलियों, सड़कों तथा बाजारों में बिताए क्योंकि उनके अभिनेता पिता नगर-नगर, गाँव-गाँव घूमकर नाटक दिखलाया करते थे। उनकी आरंभिक शिक्षा कैथोलिक स्कूल में हुई किंतु परिवार के घुमंतू होने के कारण वे किसी भी स्थान पर टिककर व्यवस्थित रूप में न पढ़ सके। अंत में वे प्रिंस्टन कालेज में पढ़ने गए लेकिन एक वर्ष बाद परीक्षा में अनुतीर्ण होने के कारण पढ़ाई छोड़ दी। पश्चात्‌ उन्होंने कई स्थानों पर क्लार्की की, पत्रकार भी रहे परंतु कहीं भी जम न सके। फिर विवाह किया और थोड़े ही समय बाद पत्नी को तलाक दे दिया। तदुपरांत उन्होंने सोने की खानों की खोज में तकदीर आजमाने की कोशिश की। वहाँ भी असफल हुए तो भागकर नाविक बन गए और आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा अन्य अनेक देशों की यात्राएँ कीं। 25 वर्ष की आयु में उन्हें क्षय रोग ने धर दबोचा तो उनकी दु: साहसिक वृत्ति भी शिथिल पड़ गई। उपचार के लिए वे छह महीने एक स्वास्थ्य केंद्र में रहे जहाँ उन्हें नाटक और नाटयसाहित्य विषयक अनेक पुस्तकें पढ़ने का सुअवसर मिला। यहीं उन्होंने जीविका कमाने के लिए नाटक लिखने का निश्चय किया। उनका प्रथम नाटक 'द वैब' था जिसके प्रकाशित होते ही वे एक प्रतिभाशाली नाटककार के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। पहली पत्नी को तलाक देने के काफी बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया लेकिन उसका अंत भी तलाक में हुआ। उनका तीसरा विवाह किया लेकिन उसका अंत भी तलाक में हुआ। उनका तीसरा विवाह भी सफल न हो सका और वे अपनी मृत्यु (27 नवंबर, 1953ई.) तक व्यवस्था एवं समाज के प्रति विद्रोही ही बने रहे।

सुशील, सौम्य एवं आकर्षक व्यक्तित्वधारी ओ'नील ने कुल मिलाकर 47 नाटकों का सृजन किया। इनके अतिरिक्त उन्होंने अनेक कविताएँ तथा उपन्यास भी लिखे हैं। ओ'नील को अपने नाटकों पर चार बार 'पुलिटज़र पुरस्कार' मिला– 'बियांड द होराइज़न' पर 1920 ई. में 'एन्ना क्राइस्टी' पर 1922 ई. में 'स्ट्रेंज इंटरल्यूड' पर 1928 ई. में तथा 'लांग डेज़ जर्नी इंटू नाइट' पर 1957 ई. (मरणोपरांत) में। 1936 ई. में उन्हें साहित्य संबंधी 'नोबेल पुरस्कार' भी प्रदान किया गया। 'नोबेल पुरस्कार' पानेवाले वे प्रथम अमरीकी नाटककार थे।

उसकी प्रमुख रचनाएँ : 1. बाउंड ईस्ट फ़ार कार्डिफ़ (1916) 2. द मून ऑव द कैरिबीज़ (1918) 3. बियांड द होराइज़न (1919), 4. एन्ना क्राइस्टी (1922), 5. स्ट्रेंज इंटरल्यूड (1928), 6. दि एम्परर जोंस (1921), 7. द हेयरी ऐप (1922), 8. आल गॉड्स चिलन गॉट विंग्स (1924), 9. द ग्रेट गॉड ब्राउन (1925), 10. डिज़ायर अंडर द एल्म्स (1925), 11. लैज़ेरस लाफ़्ड (1926), 12. मोर्निंग बिकम्स एलेक्ट्रा (1931, तीन नाटकों का संग्रह) , 13. आइसमैन कमेथ (1946) तथा लांग जर्नी इंटू नाइट (रचनाकाल अनिश्चित) हैं।

ओ'नील स्वीडन के महा नाटककार आगस्त स्ट्राइंडबर्ग से प्रभावित थे। 1936 ई. में नेबोल पुरस्कार स्वीकार करते समय उन्होंने कहा था, आधुनिक नाटक की कल्पना मुझे स्ट्राइंडबर्ग से प्राप्त हुई है। स्ट्राइंडबर्ग की भाँति उन्होंने अपने आरंभिक नाटकों में प्रकृतिवादी दृष्टिकोण अपनाया, किंतु दर्शकों से सीधे बात करने की सुविधा को लेकर उन्होंने प्रकृतिवाद का परित्याग कर अभिव्यंजनावाद का सहारा लिया और रंगमंच के नवीन रूपों तथा भूले बिसरे पुराने माध्यमों के संबंध में नए प्रयोग करने शुरू किए। विभाजित व्यक्तित्व का चित्रण करने के लिए द' ग्रेट गॉड ब्राउन' की रचना की, पर्दे के पीछे के जीवन को प्रस्तुत करने की दृष्टि से 'द स्ट्रेंज इंटरल्यूड' में लंबे स्वगत कथनों तथा पार्श्व संवादों की योजना की और पृथकत्व एवं काव्यात्मक यथार्थ के सृजन हेतु 'मार्को विलियम्स' तथा 'लैज़ेरस लाफ़्ड' में वृंदगानों एवं बैले का प्रयोग किया। नाटकों की लंबाई के मामले में भी ओ'नील अन्य नाटककारों से अलग हैं। उन्होंने 15 मिनट के स्वगत कथनात्मक 'बिफ़ोर ब्रेकफ़ास्ट' से लेकर रंगमंच पर तीन दिन में पूरे होनेवाले और दर्शकों को बेहद उबानेवाले 'मोर्निग बिकम्स एलेक्ट्रा' जैसे बृहदाकार नाटक भी लिखे हैं। उनके उक्त प्रयोगों से परंपराप्रेमी सामाजिक तथा समालोचक काफी क्षुब्ध हुए। ओ'नील के चरित्र प्रतीकात्मक (सिंबॉलिक) कहे जाते हैं। ये चरित्र अपने अचेतन मन की तरंगों को स्वगत कथन के रूप में अनजाने ही व्यक्त करते हुए से लगते हैं। उनके बहुत से चरित्र तो इतने विलासी हैं कि वे अपने निकटतम संबंधियों से भी कामतृप्ति की आकांक्षा रखते हैं। तो भी अमरीकी रंगमंच के उत्थान और विकास में अकेले ओ'नील ने जितना योगदान किया है, उतना किसी अन्य अमरीकी नाटककार ने नहीं किया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ