रिचर्ड कोब्डेन

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
रिचर्ड कोब्डेन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 162
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेवरीलाल गुप्त

रिचर्ड कोब्डेन (1804-1865 ई.)। अँगरेज राजनेता तथा अर्थशास्त्री। मिडहर्स्ट (ससेक्स) के निकट डनफोड फार्म में किसान के घर जन्म। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण यार्कशायर के एक निजी शिक्षालय में शिक्षा। 1819 ई. में अपने चाचा के ओल्डचेंज (लंदन) स्थित गोदाम में क्लर्क के रूप में काम आरंभ किया। कुछ दिनों गोदाम में काम करने के बाद वे चाचा के फर्म के प्रतिनिधि के रूप में यात्रा करने लगे। 1828 में दो मित्रों के सहयोग से कपड़े की दुकान खोली। तीन वर्ष पश्चात्‌ उन लोगों ने सैबडेन (लंकाशायर) में एक कारखाना खरीदा और कपड़े की छपाई का काम आरंभ किया। इस व्यवसाय में लगन के साथ कार्य किया फलत: कोब्डेन छपाई को कपड़े की छपाई के रूप में ख्याति प्राप्त हुई।

कोब्डेन ने अपने शिक्षा के अभाव की पूर्ति स्वाध्याय और विविध देशों की यात्राओं द्वारा की। वे जिन देशों में गए वहाँ की आर्थिक प्रणाली का विस्तृत अध्ययन किया। फलस्वरूप उन्होंने दो पुस्तिकाएँ प्रकाशित की जिनको देखने से ज्ञात होता है कि विदेश नीति संबंधी उनके विचारों की रूपरेखा उसी समय परिपक्व हो चुकी थी। इनमें से एक है इंग्लैंड, आयरलैंड और अमेरिका जो 1835 ई. में मैंचेस्टर के एक व्यापारी के नाम से प्रकाशित हुई। इसमें उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि रूस के विरुद्ध तुर्की की प्रतिरक्षा में इंग्लैंड का कोई स्वार्थ नहीं है। दूसरी पुस्तिका रूस 1836 ई. में छपी इसमें उन्होंने शक्ति संतुलन के सिद्धांत की कटु आलोचना की।

1838 ई. के अक्टूबर में मैंचेस्टर के सात व्यापारियों के साथ जिनमें जान ्व्रााइट का नाम उल्लेखनीय है, मिलकर, कोब्डेन ने अन्न कानून रद्द कराने के निमित्त एक संस्था स्थापित की। उन्होंने अपने इस आंदोलन में मुक्त व्यापार का संबंध शांति और निरस्त्रीकरण के साथ जोड़ा और अपने विचारों के समर्थन के लिये मजबूत संगठन बनाए। वे अपने विचारों के प्रचार के लिये उत्साहवर्धक लघु लेख भी लिखते रहे। उन्होंने इंग्लैंड के किसानों में आत्मविश्वास उत्पन्न किया और उन्हें विश्वास दिलाया कि अन्न कानून के विलोपन तथा मुक्त व्यापार को अपनाने में ही उनका कल्याण है।

सन 1841 में कोब्डेन स्टाकपोर्ट निर्वाचन क्षेत्र से पार्लामेंट (कामन्स सभा) के सदस्य चुने गए और अपने निश्चयात्मक विचारों द्वारा प्रधानमंत्री राबर्ट पील को मुक्त व्यापार के लिये सहमत किया। 1845 ई. में राबर्ट पील के मंत्रिमंडल ने अन्न कानून के विलोपन का विधेयक पारित किया। विधेयक के सफलतापूर्वक पारित हो जाने पर पील ने कहा, इन कार्रवाइयों की सफलता का श्रेय सर्वथा रिचर्ड कोब्डेन को ही है। कोब्डेन की ख्याति यद्यपि मुक्त व्यापार के दूत के रूप में ही है तथापि उन्होंने 1860 ई. में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच एक व्यापारिक समझौता कराने में सफलता प्राप्त की थी तथा अमरीका के गृहयुद्ध में इंग्लैंड की ओर से महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

रिचर्डं कोब्डेन असाधारण व्यक्ति थे। उनमें संगठन की अद्भुत क्षमता थी। वे एक अच्छे वक्ता भी थे। उनके विचारों में निर्भीकता, तर्क और भावना का सम्मिश्रण होता था। जिस युग में वे पैदा हुए थे, उस युग में वित्त, सरकार और राजनीति ये विषय कुछ राजनीतिक परिवारों एवं सरकारी अफसरों के ही चिंतन के विषय माने जाते थे। कोब्डेन ने अपनी वक्तृत्व तथा संगठन शक्ति द्वारा अर्थशास्त्र का ज्ञान तथा सरकार के वार्षिक बजट की आलेचना करने की क्षमता व्यापारियों, किसानों और मजदूरों तक फैलाई। इस प्रकार कोब्डेन ने राजनीतिक शिक्षा का प्रचार जनसाधारण में किया। कोब्डेन की मृत्यु लंदन में 2 अप्रैल 1865 ई. को हुई ।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शुभदा तेलंग