वक्फ

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
वक्फ
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10
पृष्ठ संख्या 370-371
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1975 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख संपादक ब्रज किशोर शर्मा

वक्फ (Wakf) के शाब्दिक अर्थ हैं प्रतिबंध। विधि के क्षेत्र में भारत में इस शब्द की परिभाषा भारतीय वक्फ विधि 1913 की धारा 2 में दी हुई है। उसके अनुसार किसी मुस्लिम धर्म के अनुयायी द्वारा मुस्लिम विधि द्वारा मान्य धार्मिक, पवित्र या धर्मांदा विषय के लिए संपत्ति के स्थायी अनुदान को वक्फ कहते हैं। किंतु यह परिभाषा उस विधि के विषय तक की सीमित है, सर्वग्राही नहीं। सामान्य रूप से वक्फ की मान्यता के लिए तीन वस्तुएँ आवश्यक हैं। एक :प्रेरणा धार्मिक हो; दो: अनुदान स्थायी हो; तीन:अनुदान का उपयोग मानवकल्याण के लिए हो।

कुरान में वक्फ के निमित्त कोई उल्लेख नहीं है। इसकी उत्पत्ति परंपरा ('हदीस') से है। कथा इस प्रकार है : उमर ने खैबर के प्रदेश में कुछ भूमि प्राप्त की और पैगंबर के पास जाकर इस भूमि के सर्वोत्तम उपयोग के लिए संम्पति माँगी। इसपर पैगंबर ने कहा-संपत्ति पर बंधान लगा दो और उसका भोग मानव मात्र के निमित्त कर दो और न तो उसका-संपत्ति का-क्रय होगा, न दान, न दाय, और उसकी उपज को संतान के लिए, संबंधियों के लिए, निर्धनों के लिए एवं ईश्वर के कार्य के लिए व्यय करो। उमर ने इसी नियम के अनुसार संपत्ति का उपयोग किया और वह वक्फ शताब्दियों तक चलता रहा जब तक वह भूमि अनुपयोगी न हो गई। यह कथा गैत-उल-बयान में दी है और अमीर अली ने भी अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया है। यह कथा ही है वक्फ संस्था की आधारभूत शिला। इसी पर कालांतर में भिन्न भिन्न विधिविशेषज्ञों ने अपने विचारों का निर्माण किया। मिस्र की संसद ने 1946 में वक्फ के विषय में कुछ नियम बनाए और 1952 में जनता के इच्छानुसार वक्फ संस्था ही समाप्त कर दी। लेबनान ने 1947 में वक्फ को भी अनंतोपभोग के विरुद्ध नियम के अंतर्गत विधि द्वारा कर दिया है और कोई भी वक्फ अनिश्चित अवधि तक वैध नहीं है 1949 में सीरिया ने वक्फ आल-अलऔलाद (पुत्रपौत्रादिक्रम) अवैध घोषित कर दिए हैं।

इन सब प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि में है वक्फ के कारण उत्तरोत्तर आर्थिक क्षीणता की वृद्धि एवं आधुनिक आर्थिक संगठन में वक्फ की अनुपयुक्तता। इसी कारण मरक्को में 1830 में व तुर्की में 1924 में ही इस संस्था का निर्मूलन हो गया।

वक्फ के पूर्ण होने के विषय में इमाम आबू यूसुफ व इमाम मुहम्मद में मतभेद है। आबू यूसुफ के अनुसार घोषणा होते ही वक्फ पूर्ण हो जाता है। इमाम मुहम्मद के अनुसार घोषण के साथ ही मुतवल्ली की नियुक्ति एवं कब्जा देना भी आवश्यक है। भारत के न्यायालयों ने आबू यूसुफ के मत को प्रधानता दी है।

शिया इशना आशारी मजहब के अनुसार भी कब्जा देना आवश्यक है।

वक्फ का विभाजन

भारतीय रजिस्ट्रीकरण ऐक्ट के अनुसार यदि वक्फ की संपत्ति का मूल्य 100 रुपए से अधिक हो तो रजिस्ट्रीकरण अनिवार्य है। वक्फ तीन वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं-सार्वजनिक, अर्ध सार्वजनिक एवं व्यक्ति गत। वक्फ के मूल ये हैं-

  1. वक्फ का अनुदान स्थायी हो,
  2. अनुदान लिखित होना आवश्यक नहीं है, मौखिक भी हो सकता है,
  3. चिरकाल से होता आया उपयोग भी वक्फनिर्माण के लिए पर्याप्त है,
  4. वक्फ की निर्मिति वसीयत द्वारा भी हो सकती है,
  5. कोई भी मुस्लिम संपत्ति वक्फ कर सकता है।

आरंभ में यह नियम था कि केवल स्थावर संपत्ति ही वक्फ की जा सकती है। किंतु कुछ काल पश्चात्‌ विधिनिष्णातों ने यह नियम बनाया कि वे वस्तुएँ जो व्यवहार से क्षीण नहीं होती हैं वक्फ की जा सकती हैं। अतएव पढ़ने के लिए कुरान या कंपनी का अंश आदि भी वक्फ की संपत्ति हो सकती है। किंतु यदि संपत्ति संदिग्ध रूप से उल्लिखित हो तो उसका वक्फ अवैध होगा। भारतीय वक्फ विधि के अनुसार, वक्फ के निमित्त को मुस्लिम धर्मानुसार धार्मिक, पवित्र या जनहिताय होना अनिवार्य है। निमित्त यदि अस्पष्ट हो तो वक्फ अनुचित होगा। इस विषय पर मतभेद है कि स्पष्टता व निश्चिति के अंग्रेजी विधि के सिद्धांत भारत में अपनाए जाने चाहिए या नहीं। अमीर अली व तैयबजी प्रभृति लेखकों का मत है कि विदेशी सिद्धांत लागू नहीं किए जाने चाहिए। उनके अनुसार यदि वक्फ निर्माण का आशय स्पष्ट व सुनिश्चित है तो निमित्त अनिश्चित होने पर भी वक्फ उचित होगा।

वक्फ के अंतर्गत कृपापात्र कौन हो सकते हैं, इस विषय पर भी मतैक्य नहीं है। मुस्लिम विधि के अनुसार धनी व निर्धन सभी कृपापात्र (मौकूफ़ आलेती) हो सकते हैं। किंतु केवल हनफी वाकिफ़ ही स्वयं के लाभ के लिए प्रबंध कर सकता हैं, अन्य मतावलंबी नहीं। इस मतभेद के पृष्ठ में है, आबू हनीफा का विचार कि अनुदान के उपरांत भी वाकिफ का अधिकार विनष्ट नहीं होता।

वक्फ आल-अल

औलाद (परिवार हेतु अनुदान) न्यायालयों के सम्मुख विवाद का प्रश्न रहा है। प्रिवी कौंसिल ने 1894 में अपने निर्णय द्वारा घोषित कर दिया कि इस प्रकार के वक्फ हानिकारक एवं अधार्मिक हैं और परिणामस्वरूप अवैध है। इस निर्णय का मुस्लिम विधि निष्णातों व जनसाधारण ने एक होकर न्यायाधिपति अमीर अली व मौलान शिवली नुमानी के नेतृत्व में विरोध किया। असंतोष विस्तृत हो जानेपर भारतीय संसद् ने 1913 में वक्फ मान्यकरण विधि द्वारा प्रिवी कौंसिल के निर्णय के विरुद्ध व्यवस्था देते हुए परिवार हेतु किए गए वक्फ को वैध घोषित कर दिया। धारा 3 (अ) के अंतर्गत वाकिफ के परिवार अथवा संतति के निर्वाह या आधार के निमित्त वक्फ की संपत्ति का पूर्ण या आंशिक व्यय वैध है। 1922 में प्रिवी कौंसिल ने अपने निर्णय में कहा कि वक्फ मान्यकरण विधि 1913 भूतलक्षी नहीं है, अतएव 1913 के पूर्व के पारिवारिक वक्फ अब भी अवैध हैं। इस कमी को दूर करने के उद्देश्य से 1930 में विधि द्वारा 1913 की विधि को भूतलक्षी बना दिया गया।

वक्फ निर्माण के पश्चात्‌ प्रश्न उठता है उसके सुचारु शासन का। वक्फ की संपत्ति की रक्षा एवं वक्फ के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उत्तरदायी मृतवल्ली होता है। मुतवल्ली व न्यासी के कार्य व अधिकारों में भिन्नता है। उसकी न्यासित को तौलियत कहते हैं।

साधारणतया वाकिफ स्वयं मुतवल्ली के पद के उत्तराधिकार के विषय में नियम वक्फनामा में लिख देता है। यदि ऐसा न हुआ हो तो वाकिफ अपने जीवन काल में मृतवल्ली नामित कर देता है। वाकिफ नाम निर्दिष्ट करने का अधिकार निष्पादक को भी सौंप सकता है। तौलियत वंशानुगत नहीं है। प्रिवी कौंसिल ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट कर दिया है कि स्त्रियों के इस पद पर आसीन होने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यदि इस पद के साथ जुड़े हुए कुछ धार्मिक कृत्य ऐसे हों जो स्त्रियाँ स्वत: या प्रतिनियुक्त द्वारा करवा सकने में असमर्थ मानी जाती हों तब स्त्री मुतवल्ली नहीं हो सकती। उदाहरणत: सज्जादमशीन खतीब, मुजावर आदि।

नियुक्ति के पश्चात्‌ मुतवल्ली को हटाना वाकिफ की शक्ति से परे है। न्यायालय यदि चाहे तो अपकरण, शोधाक्षमता आदि किसी दोष के आधार पर हटा सकता है। मुतवल्ली का पारिश्रमिक निश्चित करने का अधिकार प्रतिष्ठापक को है। ऐसा न होने पर न्यायालय को अधिकार है कि पारिश्रमिक निश्चित कर दे किंतु यह मद वक्फ की आय के दशांश से अधिक न हो। मुतवल्ली को न्यायालय की अनुमति के बिना संपत्ति को क्रय करने का या बंधक रखने का अधिकार नहीं है यदि यह अधिकार वक्फ़नामे में प्रदत्त न हो।

1923 के पश्चात्‌ कतिपय विधियों द्वारा भिन्न भिन्न राज्यों में वक्फ के शासन के लिए नियम बनाए गए हैं।

मस्जिद, खानकाह, तकिया, दरगाह, इमामबाड़ा आदि के शासनादि के नियम वक्फ से भिन्न हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संदर्भ ग्रंथ-

मुहम्मदन ला, तैयबजी (Muhammadan Law By Tyabji 1940); मुहम्मदन ला, भाग 1, अमीर अली 1912 मुस्लिम ला, के.पी. सक्सेना 1955 (Muslim Law K.P. Saxena 1955); आउटलाइंस ऑव मुहम्मदन ला 1955 एफ.ए.ए. फैज़ी (Outlines of Muhammadan Law A.A.A. Fyzee 1955); मुहम्मदन ला - डी.एफ.मुल्ला 1955 (Mahammadan Law, D.F. Mulla 1955); जीवनदास साहू वि. शाह कबीरुद्दीन (1840) 2 एम.आइ.ए. 390; रहीमन वि. बकरीदन (1935) 11 लखनऊ 735; खलील अहमद खाँ वि. मलिका मेंहर निगर बेगम ए.आइ.आर. (1954) इलाहाबाद 373; अबुल फता मोहम्मद वि. रसमयधर चौधरी (1894) 22 आइ.ए. 76; बिकनी मिया वि. मुखलाल पोद्दार आइ.एल.आर. 20 कलकत्ता 116।