श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 41 श्लोक 36-49
दशम स्कन्ध: एकचत्वारिंशोऽध्यायः (41) (पूर्वार्ध)
अरे, मूर्खों! जाओ, भाग जाओ! यदि कुछ दिन जीने की इच्छा हो तो फिर इस तरह मत माँगना। राज्यकर्मचारी तुम्हारे जैसे उच्छ्रिंखलों को कैद कर लेते हैं, मार डालते हैं और जो कुछ उनके पास होता है, छीन लेते हैं’ । जब वह धोबी इस प्रकार बहुत कुछ बहक-बहककर बातें करने लगा, तब भगवान श्रीकृष्ण ने तनिक कुपित होकर उसे एक तमाचा जमाया और उसका सिर धड़ाम से धड़ से नीचे जा गिरा । यह देखकर उस धोबी के अधीन काम करने वाले सब-के-सब कपड़ों के गट्ठर वहीँ छोड़कर इधर-उधर भाग गये। भगवान ने उन वस्त्रों ले लिया । भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी ने मनमाने वस्त्र पहन लिये तथा बचे हुए वस्त्रों में से बहुत-से अपने साथी ग्वाल-बालों को भी दिये। बहुत-से कपड़े तो वहीँ जमीन पर ही छोड़कर चल दिये ।
भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जब कुछ आगे बढ़े, तब उन्हें एक दर्जी मिला। भगवान का अनुपम सौन्दर्य देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने उन रँग-बिरंगे सुन्दर वस्त्रों को उनके शरीर पर ऐसे ढंग से सजा दिया कि वे सब ठीक-ठीक फब गये । अनेक प्रकार के वस्त्रों से विभूषित होकर दोनों भाई और भी अधिक शोभायमान हुए ऐसे जान पड़ते, मानो उत्सव के समय श्वेत और श्याम गजशावक भलीभाँति सजा दिये गये हों । भगवान श्रीकृष्ण उस दर्जी पर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे इस लोक में भरपूर धन-सम्पत्ति, बल-ऐश्वर्य, अपनी स्मृति और दूर तक देखने-सुनने आदि की इन्द्रियसम्बन्धी शक्तियाँ दी और मृत्यु के बाद के लिये अपना सारुप्य मोक्ष भी दे दिया ।
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण सुदामा माली के घर गये। दोनों भाइयों को देखते ही सुदामा उठ खड़ा हुआ और पृथ्वी पर सिर रखकर उन्हें प्रणाम किया । फिर उनको आसन पर बैठाकर उनके पाँव पखारे, हाथ धुलाये और तदनन्तर ग्वालबालों के सहित सबकी फूलों के हार, पान, चन्दन आदि सामग्रियों से विधिपूर्वक पूजा की । इसके पश्चात् उसने प्रार्थना की—‘प्रभो! आप दोनों के शुभागमन से हमारा जन्म सफल हो गया। हमारा कुल पवित्र हो गया। आज हम पितर, ऋषि और देवताओं के ऋण से मुक्त हो गये। वे हम पर परम संतुष्ट हैं । आप दोनों सम्पूर्ण जगत् के परम कारण हैं। आप संसार के अभ्युदय-उन्नति और निःश्रेयस—मोक्ष के लिये ही इस पृथ्वी पर अपने ज्ञान, बल आदि अंशों के साथ अवतीर्ण हुए हैं । यद्यपि आप प्रेम करने वालों से ही प्रेम करते हैं, भजन करने वालों को ही भजते हैं—फिर भी आपकी दृष्टि में विषमता नहीं है। क्योंकि आप सारे जगत् के परम सुह्रद् और आत्मा हैं। आप समस्त प्राणियों और पदार्थों समरूप से स्थित हैं । मैं आपक दास हूँ। आप दोनों मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं आप लोगों की क्या सेवा करूँ। भगवन्! जीव पर आपका यह बहुत बड़ा अनुग्रह है, पूर्ण कृपाप्रसाद है कि आप उसे आज्ञा देकर किसी कार्य में नियुक्त करते हैं । राजेन्द्र! सुदामा माली ने इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद भगवान का अभिप्राय जानकार बड़े प्रेम और आनन्द से भरकर अत्यन्त सुन्दर-सुन्दर तथा सुगन्धित पुष्पों से गुंथें हुए हार उन्हें पहनाये ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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