श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 80 श्लोक 42-45

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

दशम स्कन्ध: एशीतितमोऽध्यायः(80) (उत्तरार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एशीतितमोऽध्यायः श्लोक 42-45 का हिन्दी अनुवाद


द्विज-शिरोमणियों! मैं तुम लोगों से अत्यन्त प्रसन्न हूँ। तुम्हारे सारे मनोरथ, सारी अभिलाषाएँ पूर्ण हों, और तुम लोगों ने हमसे जो वेदाध्ययन किया है, वह तुम्हें सर्वदा कण्ठस्थ रहे तथा इस लोक एवं परलोक में कहीं भी निष्फल न हो’। प्रिय मित्र! जिस समय हम लोग गुरुकुल में निवास कर रहे थे, हमारे जीवन में ऐसी-ऐसी अनेकों घटनाएँ घटित हुईं थीं। इसमें सन्देह नहीं कि गुरुदेव की कृपा से ही मनुष्य शान्ति का अधिकारी होता और पूर्णता को प्राप्त करता है । ब्राम्हणदेवता ने कहा—देवताओं के आराध्यदेव जगद्गुरु श्रीकृष्ण! भला, अब हमें क्या करना बाकी है ? क्योंकि आपके साथ, जो सत्यसंकल्प परमात्मा हैं, हमें गुरुकुल में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । प्रभो! छन्दोंमय वेद, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चतुर्विध पुरुषार्थ के मूल स्त्रोत हैं; और वे हैं आपके शरीर। वही आप वेदाध्ययन के लिये गुरुकुल में निवास करें, यह मनुष्य-लीला का अभिनय नहीं तो और क्या है ?



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-