हरिद्वार

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लेख सूचना
हरिद्वार
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 12
पृष्ठ संख्या 293
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक कमलापति त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

हरद्वार स्थिति: 29° 57' 30" उत्तरी अक्षांश तथा 78° 12° 62" पूर्व देशान्तर। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में सहारनपुर से 39 मील उत्तर पूर्व में गंगा के दाहिने तट पर बसा हुआ हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान है। यहीं गंगा पर्वतीय प्रवेश छोड़कर मैदान में प्रवेश करती है। यह बहुत प्राचीन नगरी है। प्राचीन काल में कपिलमुनि के नाम पर इसे कपिला भी कहा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ कपिल मुनि का तपोवन था। यह स्थान बड़ा रमणीक है और यहाँ की गंगा हिंदुओं द्वारा बहुत पवित्र मानी जाती है। ह्वेनसांग भी 8वीं शताब्दी में हरद्वार आया था और इसका वर्णन उसने 'मोन्यु-लो' नाम से किया है। मोन्यू लो को आधुनिक मायापुरी गाँव समझा जाता है जो हरद्वार के निकट में ही है। प्राचीन किलों और मंदिरों के अनेक खंडहर यहाँ विद्यमान है। यहाँ का प्रसिद्ध स्थान हर की पैडी है जहाँ 'गंगा द्वार का मंदिर भी है। हर की पैड़ी पर विष्णु का चरणच्ह्रि है जहाँ लाखों यात्री स्नान कर चरण की पूजा करते हैं और यहाँ का पवित्र गंगा जल देश के प्राय: सभी स्थानो में यात्रियों द्वारा ले जाया जाता है। प्रति वर्ष चैत्र में मेष संक्रांति के समय मेला लगता है जिसमें लाखों यात्री इकट्ठे हेते हैं। बारह वर्षों पर यहाँ कुंभ का मेला लगता है जिसमें कई लाख यात्री इकट्ठे होते और गंगा में स्नान कर विष्णुचरण की पूजा करते हैं। यहाँ अनेक मंदिर और देवस्थल हैं। माया देवी का मंदिर पत्थर का बना हुआ है। संभवत: यह 10वीं शताब्दी का बना होगा। इस मंदिर में माया देवी की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के तीन मस्तक और चार हाथ हैं। 1904 ई. में लक्सर से देहरादून तक के लिए रेलमार्ग बना और तभी से हरद्वार की यात्रा सुगम हो गई। हरद्वार का विस्तार अब पहले से बहुत बढ़ गया है। यह डेढ़ मील से अधिक की लंबाई में बसा हुआ है। यह स्थान वाणिज्य का केंद्र था और कभी यहाँ बहुत घोड़े बिकते थे। इसके निकट ही हृषिकेश के पास सोवियत रूस के सहयोग से एक बहुत बड़ा ऐंटी-बायोटिक कारखाना खुला है। यहाँ से गंगा की प्रमुख नहर निकली है जो इंजीनियरी का एक अद्भुत कार्य समझा जाता है। यात्रियों की सुविधा के लिए अनेक धर्मशालाएँ बनी हैं। यहाँ के स्वास्थ्य की दशा में अब बहुत सुधार हुआ है।

लोगों का विश्वास है कि यहाँ मरने वाला प्राणी परमपद पाता है और स्नान से जन्म जन्मांतर का पाप कट जाता है और परलोक में हरिपद की प्राप्ति होती है। अनेक पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन और प्रशंसा उल्लिखित है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ