श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 89 श्लोक 31-46

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दशम स्कन्ध: एकोननवतितमोऽध्यायः(89) (उत्तरार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकोननवतितमोऽध्यायः श्लोक 31-46 का हिन्दी अनुवाद


ब्राम्हण ने कहा—अर्जुन! यहाँ बलरामजी, भगवान् श्रीकृष्ण, धनुर्धरशिरोमणि प्रद्दुम्न, अद्वितीय योद्धा अनिरुद्ध भी जब मेरे बालकों की रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं; इन जगदीश्वरों के लिये भी यह काम कठिन हो रहा है; तब तुम इसे कैसे करना चाहते हो ? सचमुच यह तुम्हारी मुर्खता है। हम तुम्हारी इस बात पर बिलकुल विश्वास नहीं करते । अर्जुन ने कहा—ब्रह्मन्! मैं बलराम, श्रीकृष्ण अथवा प्रद्दुम्न नहीं हूँ। मैं हूँ अर्जुन, जिसका गाण्डीव नामक धनुष विश्वविख्यात है ।ब्राम्हणदेवता! आप मेरे बल-पौरुष का तिरस्कार मत कीजिये। आप जानते नहीं, मैं अपने पराक्रम से भगवान् शंकर को सन्तुष्ट कर चुका हूँ। भगवन्! मैं आपसे अधिक क्या कहूँ, मैं युद्ध में साक्षात् मृत्यु को भी जीतकर आपकी सन्तान ला दूँगा । परीक्षित्! जब अर्जुन ने उस ब्राम्हण को इस प्रकार विश्वास दिलाया, तब वह लोगों से उनके बल-पौरुष का बखान करता हुआ बड़ी प्रसन्नता से अपने घर लौट गया । प्रसव का समय निकट आने पर ब्राम्हण आतुर होकर अर्जुन के पास आया और कहने लगा—‘इस बार तुम मेरे बच्चे को मृत्यु से बचा लो’। यह सुनकर अर्जुन ने शुद्ध जल से आचमन किया, तथा भगवान् शंकर को नमस्कार किया। फिर दिव्य अस्त्रों का स्मरण किया और गाण्डीव धनुष पर डोरी चढ़ाकर उसे हाथ में ले लिया । अर्जुन ने बाणों को अनेक प्रकार के अस्त्र-मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके प्रसव गृह को चारों ओर से घेर दिया। इस प्रकार उन्होंने सूतिकागृह के ऊपर-नीचे, अगल-बगल बाणों का एक पिंजड़ा-सा बना दिया ।इसके बाद ब्राम्हणी के गर्भ से एक शिशु पैदा हुआ, जो बार-बार रो रहा था। परन्तु देखते-ही-देखते वह सशरीर आकाश में अन्तर्धान हो गया । अब वह ब्राम्हण भगवान् श्रीकृष्ण के सामने ही अर्जुन की निन्दा करने लगा। वह बोला—‘मेरी मुर्खता तो देखो, मैंने इस नपुंसक की डींगभरी बातों पर विश्वास कर लिया । भला, जिसे प्रद्दुम्न, अनिरुद्ध यहाँ तक कि बलराम और भगवान् श्रीकृष्ण भी न बचा सके, उसकी रक्षा करने में और कौन समर्थ है ? मिथ्यावादी अर्जुन को धिक्कार है! अपने मुँह अपनी बड़ाई करने वाले अर्जुन के धनुष को धिक्कार है ! ! इसकी दुर्बुद्धि तो देखो! यह मूढ़तावश उस बालक को लौटा लाना चाहता है, जिसे प्रारब्ध ने हमसे अलग कर दिया है’। जब वह ब्राम्हण इस प्रकार उन्हें भला-बुरा कहने लगा, तब अर्जुन योगबल से तत्काल संयमनीपुरी में गये, जहाँ भगवान् यमराज निवास करते हैं । वहाँ उन्हें ब्राम्हण का बालक नहीं मिला। फिर वे शस्त्र लेकर क्रमशः इन्द्र, अग्नि, निरृति, सोम, वायु और वरुण आदि की पुरियों में, अतलादि नीचे के लोकों में, स्वर्ग से ऊपर के महार्लोंकादि में एवं अन्यान्य स्थानों में गये । परन्तु कहीं भी उन्हें ब्राम्हण का बालक न मिला। उनकी प्रतिज्ञा पूरी न हो सकी। अब उन्होंने अग्नि में प्रवेश करने का विचार किया। परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हने ऐसा करने से रोकते हुए कहा— ‘भाई अर्जुन! तुम अपने आप अपना तिरस्कार मत करो। मैं तुम्हें ब्राम्हण के सब बालक अभी दिखाये देता हूँ। आज जो लोग तुम्हारी निन्दा कर रहे हैं, वे ही फिर हमलोगों की निर्मल कीर्ति की स्थापना करेंगे’ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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