महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 92-105

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सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 92-105 का हिन्दी अनुवाद

508 यजुःपादभुजः- यजुर्वेद जिनके हाथ-पैर हैं, 509 गुहयः-गोपनीयस्वरूप, 510 प्रकाश-भक्तोंपर कृपा करके स्वयं ही उनके समक्ष अपनेको प्रकाशित कर देनेवाले, 511 जंगमः- चलने-फिरनेवाले, 512 अमोघार्थः- किसी वस्तुके लिये याचना करनेपर उसे अवश्य सफल होनेवाले, 513 प्रसादः- दया करके शीघ्र प्रसन्न होनेवाले, 514 अभिगम्यः- सुगमतासे प्राप्त होनेयोग्य, 515सुदर्शनः- सुन्दर दर्शनवाले। 516 उपकारः- उपकार करनेवाले, 517 प्रियः- भक्तोंके प्रेमास्पद, 518 सर्वः- सर्वस्वरूप, 519 कनकः- सुवर्णस्वरूप, 520 कांचनच्छविः- कांचनके समान कमनीय कान्तिवाले, 521 नाभिः- समस्त भुवनका मध्यदेशरूप, 522 नन्दिकरः- आनन्द देनेवाले, 523 भावः- श्रद्धा-भक्तिस्वरूप, 524 पुष्करस्थपतिः- ब्रहाणडरूपी पुष्करका निर्माण करनेवाले, 525 स्थिरः- स्थिरस्वरूप, 526 द्वादश-ग्यारह रूद्रोसे श्रेष्ठ बारहवे रूद्र, 527 त्रासनः-संहारकारी होने कारण भयजनक, 529 आद्यः-सबके आदि कारण, 530 यज्ञसमाहितः-यज्ञमें उपस्थित रहनेवाले, 531 नक्तम्- प्रलयकालकी रात्रिस्वरूप, 532 कलिः-कलिके स्वरूप, 533 कालः- सबको अपना ग्रास बनानेवाले कालरूप, 524 मकरः- मकराकार शिशुसार चक्र, 535 कालपूजितः- काल अर्थात् मृत्युके द्वारा पूजित। 536 सगणः- प्रमथ आदि गणोंसे युक्त, 537 गणकारः- बाणासुर आदि भक्तोंको अपने गणमें सम्मिलित करनेवाले, 538 भूतवाहनसारथिः- त्रिपुर-विनाशके लिये समस्त प्राणियोंके योगक्षेमका निर्वाह करनेवाले ब्रहाजीको सारथि बनाने वाले, 539 भस्मषयः- भस्मपर शयन करनेवाले, 540 भस्मगोप्ता- भस्मस्वरूवप, 541 भस्मभूतः- भस्मस्वरूप, 542 तरूः- कल्पवृक्षस्वरूप, 543 गणः-भृंगिरिटि और नन्दिकेश्वर आदि पार्षदरूप। 544 लोकपालः- चतुर्दश भुवनोंका पालन करनेवाले, 545 अलोकः- लोकातीत, 546महात्मा-, 547 सर्वपूजितः- सबके द्वारा पूजित, 548शुक्लः- शुद्धस्वरूप, 549 त्रिशुक्लः- मन,वाणी और शरीर ये तीनों, 550 सम्पन्नः- सम्पूबर्ण सम्पदाओंसे युक्त, 551शुचिः-परम पवित्र, 552 भूतनिशेवितः- समस्त प्राणियोंद्वारा सेवित। 553 आश्रमस्थः- चारों आश्रमोंमें धर्मस्वरूपसे स्थित रहनेवाले, 554 क्रियावस्थः-यज्ञादि क्रियाओंमें संलग्न, 555 विश्वकर्ममतिः-संसारकी रचनारूप कर्ममें कुशल, 556 वरः- सर्वश्रेष्ठ, 557 विशालशाखः-लंबी भुजाओंवाले, 558 ताम्रोष्ठः- लाल-लाल आठवाले, 559 अम्बुजालः-जलसमूह-सागररूप, 560 सुनिष्चलः- सर्वथा निश्चलरूप। 561 कपिलः- कपिल वर्ण, 562 कपिषः- पीले वर्णवाले, 563शुक्लः-श्वेत वर्णवाले, 564 आयुः-जीवनरूप, 565 परः-प्राचीन, 566 अपनः-अर्वाचीन, 567 गन्धर्वः-चित्ररथ आदि गन्धर्वरूप, 568 अदितिः- देवमाता अदितिस्वरूप, 569 ताक्ष्यं- विनतानन्दन गरूडरूप, 570 सुविज्ञेयः- सुगमतापूर्वक जानने योग्य, 571 सुषारदः-उत्तिम वाणी बोलनेवाले। 572 परश्वधायुधः-फरसेका आयुधके रूपमें उपयोग करनेवाले परशुरामरूप, 573 देवः-महादेवस्वरूप, 574 अनुकारी-भक्तोंका अनुकरण करनेवाले, 575 सुबान्धवः- उत्त,म बान्धवरूप, 576 तुम्बवीणः7 तूंबीकी वीणा बजानेवाले, 577 महाक्रोधः- प्रलयकालमें महान् क्रोध प्रकट करनेवाले, 578 उध्र्वरेताः-अस्खलितवीर्य, 579 जलेशयः- विष्णुरूपसे जलमें शयन करनेवाले। 580 उग्रः- प्रलयकालमें भयंकर रूप धारण करनेवाले, 581 वंशकरः-वंशप्रवर्तक, 582 वंश- वंशस्वरूप, 583 वंशनादः- श्रीकृष्णरूपसे वंशी बजानेवाले, 584 अनिन्दितः- निन्दारहित, 585 सर्वांगरूपः- सर्वांग पूर्णस्वरूपवाले, 586 मायावीः-, 587 सुहदः- हेतुरहित दयालु, 588 अनिलः- वायुस्वरूप,589 अनलः- अग्निस्वरूप। 590 बन्धनः- स्नेहबन्धनमें बांधनेवाले, 591 बन्धकर्ता- बन्धनरूप संसारके निर्माता, 592 सुबन्धनविमोचनः- मायाके सुदृढ़ बन्धनसे छुड़ानेवाले, 593 सयज्ञारिः- दक्षयज्ञ-शत्रुओंके साथी, 594 सकामारिः- कामविजयी योगियोंके साथी, 595 महादंष्टः- बड़ी-बड़ी दाढ़वाले नरसिंहरूप, 596 महायुधः-विशाल आयुधधारी। 597 बहुधा निन्दितः-दक्ष और उनके समर्थकोंद्वारा अनेक प्रकारसे निन्दित, 598 सर्वः-प्रलयकालमें सबका संहार करनेवाले, 599शकरः-कल्याणकारी, 600शकरः- भक्तोंको आनन्द देनेवाले, 601 अधनः-सांसारिक धनसे रहित, 602 अमरेषः-देवताओंके भी ईश्वर, 603 महादेवः- देवताओंके भी पूजनीय, 604 विश्वदेवः-सम्पूर्ण विश्वके आराध्यदेव, 605 सुरारिहाः- देवशत्रुओं वध करनेवाले। 606 अहिर्बुध्न्यः- शेषनागस्वरूप, 607 अनिलाभः-वायुके समान वेगवान्, 608 चेकितानः- अतिशय ज्ञानसम्पन्न, 609 हविः- हविष्यरूप, 610 अजैकपाद्-ग्यारह रूद्रोंमेंसे एक, 611 कापाल-दो कपालोंसे निर्मित कपालरूप अखिल के अधीश्वर, 612 त्रिशकुः-त्रिशकुरूप, 613 अजितः-किसीके द्वारा पराजित न होनेवाले, 614शिवः-कल्याणस्वरूप। 615 धन्वन्तरिः-महावैद्य धन्वन्तरिरूप, 616 धूमकेतुः-अग्निस्वरूप, 617 स्कन्दः-स्वामी कार्तिकेयस्वरूप, 618 वैश्रवणः- कुबेरस्वरूप, 619 धाता-सबको धारण करनेवाले, 620शक्रः-इन्द्रस्वरूप, 621 विष्णुः-सर्वव्यापी नारायणदेव, 622 मित्रः-बारह आदित्योंमेंसे एक, 623 त्वष्टा-प्रजापति विश्वकर्मा, 624 ध्रुवः-नित्यस्वरूप, 625 धरः-आठ वसुओंमेंसे एक वसु धरस्वरूप। 626 प्रभावः-उत्कृष्टभावसे सम्पन्न, 627 सर्वगो वायुः-सर्वव्यापी वायु-सूत्रात्मा, 628 अर्यमा-बारह आदित्योंमें एक आदित्य अर्यमारूप, 629 सविता-सम्पूर्ण जगत कि उत्पति करनेवाले, 630 रविः-सूर्य, 631 उषंगुः-सर्वदाहक किरणोंवाले सूर्यरूप, 632 विधाता-प्रजाका विशेषरूपसे धारण-पोषण करनेवाले, 633 मान्धाता-जीवको तृप्ति प्रदान करनेवाले, 634 भूतभावनः-समस्त प्राणियोंके उत्पादक।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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