महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 106-122

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सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 106-122 का हिन्दी अनुवाद

635 विभुः-विविधरूपसे विद्यमान, 636 वर्णविभावी-श्वेत-पीत आदि वर्णोको विविधरूपसे व्यक्त करनेवाले, 637 सर्वकाम-गुणावहः-समस्त भोगों और गुणोंकी प्राप्ति करानेवाले 638 पद्यनाभः-अपनी भाभिसे कमलको प्रकट करनेवाले विष्णुरूप, 639 महागर्भः-विशाल ब्रहाण्डको उदरमे धारण करनेवाले, 640 चन्द्रवक्त्रः-चन्द्रमा-जैसे मनोहर मुखवाले, 641 अनिलः-वायुदेव, 642 अनलः-अग्निदेव। 643 बलवान्-शक्तिशाली, 644 उपशान्तः-शान्तस्वरूप, 645 पुराणः-पुराणस्वरूप, 646 पुण्यचंचुः-पुण्यके द्वारा जाननेमें आनेवाले, 647 ई-दयास्वरूप, 648 कुरूकर्ता- कुरूक्षेत्रके निर्माता, 649कुरूवासी-कुरूक्षेत्रनिवासी, 650 कुरूभूतः-कुरूक्षेत्रस्वरूप, 651 गुणौषधः-गुणोंको उत्पन्न करनेवाली ओषधिके समान ज्ञान, वैराग्य आदि गुणोंके उत्पादक। 652 सर्वाशयः-सबके आश्रय, 653 दर्भचारी-वेदीपर बिछे हुए-कुषोंपर रखे हुए हविष्यको भक्षण करनेवाले, 654 सर्वेषो प्राणिनां पतिः- समस्त प्राणियोंके स्वामी, 655 देवदेवः-देवताओंके भी देवता, 656 सुखासक्तः-अपने परमानन्दमय स्वरूपमें ही रत रहनेवाले, 657 सत्-सत्स्वरूप, 658 असत्-असत्स्वरूप, 659 सर्वरत्नवित्-सम्पूर्ण रत्नोंके ज्ञाता। 660 कैलासगिरिवासी-कैलास पर्वतपर निवास करनेवाले, 661 हिमवद्गिरिसंश्रयः-हिमालयपर्वतके निवासी, 662 कूलहारी-प्रबल प्रवाहरूपसे नदियोंके तटोंका अपहरण करनेवाले, 663 कूलकर्ता-पुष्कर आदि बड़े-बड़े सरोवरोंका निर्माण करनेवाले, 664 बहुविद्यः- बहुत-सी विद्याओंके ज्ञाता, 665 बहुप्रदः-बहुत अधिक देनेवाले। 666 वणिजो-वैषयरूप, 667 वर्धकी-संसाररूपी वृक्षको काटनेवाले बढ़ई, 668 वृक्षः-संसाररूप वृक्षस्वरूप, 669 बकुलः-मौलकिसरी वृक्षस्वरूप, 670 चन्दनः-चन्दन वृक्षस्वरूप, 671 छदः-छितवन वृक्षस्वरूप, 672 सारग्रीवः-सुदृढ़ कण्ठवाले, 673 महाजत्रुः-बहुत बड़ी हंसुलवाले, 674 अलोलः-अचंचल, 675 महौषधः-महान् औषधस्वरूप। 676 सिद्धार्थकारी-आश्रितजनोंको सफलमनोरथ करनेवाले, 677 सिद्धार्थः-वेदकी व्याख्यासे निर्णीत उत्कृष्ट सिद्धान्तस्वरूप, 678 सिंहनादः-सिंहके समान गर्जना करनेवाले, 679 सिंहदंटः-सिंहके समान दाड़वाले, 680 सिंहगः-सिंहपर आरूढ़ होकर चलनेवाले, 681 सिंहवाहनः-सिंहपर सवारी करनेवाले। 682 प्रभावात्मा-उत्कृष्ट सतास्वरूप, 683 जगत्कालस्थालः-प्रलयकालमें जगत्का संहार करनेवाले कालके स्थान, 684 लोकहितः-लोकहितैषी, 685 तरूः-तारनेवाले, 686 सारंगः-चातकस्वरूप, 687 नवचक्रांगः-नूतन हंसरूप, 688 केतुमाल-ध्वजा-पताकाओंकी मालाओंसे अलंकृत, 689 सभावनः-धर्मस्थानकी रक्षा करनेवाले।। 690 भूतालयः-सम्पूर्ण भूतोंके घर, 691 भूतपतिः-सम्पूर्ण प्राणियोंके स्वामी, 692 अहोरात्रम्-दिन-रात्रिस्वरूप, 693 अनिन्दितः-निन्दारहित। 694 सर्वभूतानां वाहिता-सम्पूर्ण भूतोंका भार वाहन करनेवाले, 695 सर्वभूतानां निलयं-समस्त प्राणियोंके निवासस्थान, 696 विभुः-सर्वव्यापी, 697 भवः-सतारूप, 698 अमोघः-कभी असफल न होनेवाले, 699 संयतः-संयमशील, 700 अश्व-उच्चैःश्रवा आदि उत्तवम अश्वरूप, 701 भोजनः-अन्नदाता, 702 प्राणधारणः-सबके प्राणोंकी रक्षा करनेवाले। 703 धृतिमान्-धैर्यशाली, 704 मतिमान्-बुद्धिमान्, 705 दक्षः-चतुर, 706 सत्कृतः-सबके द्वारा सम्मानित, 707 युगाधिपः-युगके स्वामी, 708 गोपालिः-इन्द्रियोंके पालक, 709 गोपतिः-गौओंके स्वामी, 710 ग्रामः-समूहरूप, 711 गोचर्मवसनः-गोचर्ममय वस्त्र धारण करनेवाले, 712 हरिः-भक्तोंका दुःख हर लेनेवाले। 713 हिरण्यबाहुः-सुनहरी कान्तिवाली सुन्दर भुजाओंसे सुशोभित, 714 गुहापालः प्रवेशिनाम्-गुफाके भीतर प्रवेष करनेवाले योगियोंकी गुफाके रक्षक, 715 प्रकृष्टारिः-काम,क्रोध आदि शत्रुओंको क्षीण कर देनेवाले, 716 महाहर्षः-परमानन्दस्वरूप, 717 जितकामः-कामविजयी, 718 जितेन्द्रियः-इन्द्रियविजयी। 719 गान्धारः-गान्धार नामक स्वरूप, 720 सुवासः-कैलास नामक सुन्दर स्थानमें वास करनेवाले, 721 तपःसक्तः- तपस्यामें संलग्न 722 रतिः-प्रीतिरूप, 723 नरः-विराट् पुरूष, 724 महागीतः-जिनके माहात्मयका वेद-शास्त्रोद्वारा गान किया गया है ऐसे महान् देव, 725 महानृत्यः-प्रकाण्ड़ ताण्ड़व करनेवाले, 726 अप्सरोगणसेवितः-अप्सराओंके समुदायसे सेवित। 727 महाकेतुः-धर्मरूप महान् ध्वजावाले, 728 महाधातुः-सुवर्णस्वरूप, 729 नैकसानुचरः-मेरूगिरिके अनेक शिखरोंपर विचरण करनेवाले, 730 चलः-किसीकी पकड़में नहीं आनेवाले, 731 आवेदनीयः-प्रार्थना करनेयोग्य, 732 आदेश-आज्ञा प्रदान करनेवाले, 733 सर्वगन्धसुखावहः-सम्पूर्ण गन्धादि विषयोके सुखकी प्राप्ति करानेवाले। 734 तोरणः-मुक्तिद्वारस्वरूप, 735 तारणः-तारनेवाले, 736 वातः-वायुरूप, 737 परिधिः-ब्रहाण्डका घेरारूप, 738 पतिखेचरः-आकाशचारीकी स्वामी, 739 वर्धनःसंयोगः- वृद्धिका हेतुभूत स्त्री-पुरूषका संयोग, 740 वृद्धः-गुणोंमें बढ़ा-चढ़ा, 741 अतिवृद्धः-सबसे पुरातन होनेके कारण अतिवृद्ध, 742 गुणाधिकः-ज्ञान-ऐश्वर्य आदि गुणोंके द्वारा सबसे अधिकतर। 743 नित्य आत्मसहायः-आत्माकी सदा सहायता करनेवाले, 744 देवासुरपतिः-देवताओं, और असुरोंके स्वामी, 745 पतिः-सबके स्वामी, 746 युक्तः-भक्तोंके उद्धारके लिये सदा उद्यत रहनेवाले, 747 युक्तबाहुः-सबकी रक्षाके लिये उपयुक्त भुजाओंवाले, 748 देवो दिविसुपर्वणः-स्वर्गमें जो महान् देवता इन्द्र हैं, उनके भी आराध्यदेव।। 749 आषाढ़ः-भक्तोंको सब कुछ सहन करनेकी शक्ति देनेवाले, 750 सुषाढः-उतम सहनशील, 751 ध्रुवः-अविचलस्वरूप, 752 हरिणः-शुद्धस्वरूप, 753 हरः-पापहारी, 754 आवर्तमानेभ्यो वपुः-स्वर्गलोकसे लौटनेवाले नूतन शरीर देनेवाले, 755 वसुश्रेष्ठः-श्रेष्ठ धनस्वरूप अर्थात् मुक्तिस्वरूप, 756 महापथः-सर्वोतम मार्गस्वरूप। 757 विमर्षः शिरोहारी-विवेकपूर्वक दुष्टोंका शिरष्छेद करनेवाले, 758 सर्वलक्षणलक्षितः-समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न, 759 अक्षः रथयोगी-रथसे सम्बन्ध रखनेवाला धुरीस्वरूप, 760 सर्वयोगी-सभी समयमें योगयुक्त, 761 महाबलः-अनन्त शक्तिसे सम्पन्न।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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