महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 60 श्लोक 1-14

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षष्ठि (60) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षष्ठि अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

चौथे दिन-दोनों सेनाओं का व्यूहनिर्माण तथा भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ-युद्ध

संजय कहते हैं- भारत ! तब रात बीती और प्रभाव हुआ, तब भरतवंशियों की सेना के अग्रभाग में स्थित हुए महामना भीष्म समग्रसेना से घिरकर शत्रुओं से युद्ध करने के लिये चले। उस समय उनके मन में शत्रुओं के प्रति बड़ा क्रोध था ।उसके साथ चारों और से द्रोण, दुर्योधन, बाल्हिक, दुर्भर्षण, चित्रसेन, अत्यन्त बलवान जयद्रथ तथा अन्य नरेश विशाल वाहिनी को साथ लिये प्रस्थित हुए ।राजन् ! इन महान्, तेजस्वी, पराक्रमी ओर महारथी नरपतियों से घिरा हुआ राजा दुर्योधन देवताओं सहित वज्रपाणि इन्द्र के समान शोभा पा रहा था । इस सेना प्रमुख भाग में बडे़-बडे़ गजराजों के कंधों पर लगी हुई लाल, पीली, काली और सफेद रंग की फहराती हुई विशाल पताकाएं शोभा पा रही थी ।शान्तनुनन्दन भीष्म से रक्षित वह विशाल वाहिनी बडे़-बडे़ रथों, हाथियो और घोड़ों से ऐसी शोभा पा रही थी, मानो वर्षाकाल में मेघों की घटा से आच्छादित आकाश बिजली सहित बादलों से सुशाभित हो ।तदनन्तर नदी के भयानक वेग की भांति कौरवों की वह अत्यन्त भयंकर सेना शान्तनुनन्दन भीष्म से सुरक्षित हो रण के लिये अर्जुन की और सहसा चली । महामना कपिध्वज अर्जुन ने दूर से देखा कि कौरवसेना व्याल नामक व्युह में आबद्ध होने के कारण अनेक प्रकार की दिखायी दे रही है। उसकी शक्ति छिपी हुई है। उसमें हाथी, घोड़े, पैदल तथा रथियों के समूह से भरे हुए है। सेना का वह व्यूह महान् मेघों की घटा के समान जान पड़ता है ।
तदनन्तर नरश्रेष्ठ महामना वीर अर्जुन समस्त शत्रुपक्षीय युवको के वध का संकल्प लेकर श्वेत घोड़ों से जूते हुए ध्वज एवं आवरण से युक्त रथ पर आरूढ हो शत्रुसेना के सामने चले । जिसमें सब सामग्री सुन्दरता से सजाकर रखी गयी थी, अच्छी तरह बॅधी होने के कारण जिसकी ईषा अत्यन्त मनोहर दिखायी देती है तथा यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण जिसका संचालन करते है, उस वानर के चिन्ह वाली ध्वजा से युक्त रथ को युद्धभूमि में उपस्थित देख आपके पुत्रों सहित समस्त कौरव सैनिक विषादमग्न हो गये ।लोकविख्यात महारथी किरीटधारी अर्जुन अस्त्र-शस्त्र लेकर जिसे सुरक्षित रूप से अपने साथ ले आ रहे थे और जिसमें चार चार हजार मत वाले हाथी प्रत्येक दिशा में खडे़ किये गये थे, उस व्युहराज को आपके सैनिकों ने देखा । कुरूश्रेष्ठ धर्मराज युधिष्ठिर ने पहले दिन जैसा व्‍यूह बनाया था, वैसा ही वह भी था। वैसा व्‍यूह इस भूतल पर मनुष्‍यों की सेना में पहले कभी न तो देखा गया और न कभी सुना ही गया था ।तदनन्तर सेनापति की आज्ञा के अनुसार यथोचित स्थान पर पहुंचकर पांचाल ओर चेदिदेश के प्रमुख वीर खडे़ हुए। फिर उस युद्धस्थल में प्रधान के आदेशानुसार सहस्त्रो रणभेरियां एक साथ बज उठी ।सभी सेनाओं में शंखनाद, तुर्यनाद (वाघो की ध्वनि) तथा वीरो के सिंहनादसहित रथों की घरघराहट के शब्द होने लगे। फिर वीरों के द्वारा खींचे जाने वाले बाणसहित धनुष के महान् टंकार-शब्द गूंज उठे । क्षणभर में मेरी भेरी पणव आदि के शब्दों को महान् शंखनादों ने दबा लिया तथा उस शंखध्वनि से व्याप्त हुए आकाश में (पृथ्वी से) उठी हुई धुलों का भयंकर एवं अदभुत जाल सा फैल गया ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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