महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 59 श्लोक 127-139

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एकोनषष्टितम (59) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 127-139 का हिन्दी अनुवाद

उसके दोनों किनारों पर कुत्ते, कौवे, भेडिये, गीध, कंक, तरक्षु तथा अन्यान्य मासभक्षी जंतु निवास करते थे। उस भयानक नदी को लोगों ने महावैतरणी के समान देखा ।अर्जुन के बाणसमुहों से उस नदी का प्राकट्य हुआ था। वह चर्बी, भज्जा, तथा रक्त बहाने के कारण बड़ी भयंकर जान पड़ती थी। इस प्रकार कौरवसैना के प्रधान-प्रधान अर्जुन के द्वारा मारे गये। यह देखकर चेदि, पांचाल, कुरूष और मत्‍स्‍यदेश के क्षेत्रिय तथा कुन्ती के पुत्र- ये सभी नरवीर विजय पाने से निर्भय हो कौरव योद्धाओं को भयभीत करते हुए एक साथ सिंहनाद करने लगे । शत्रुओं को भय देने वाले किरीटधारी अर्जुन के द्वारा कौरवसेना के प्रमुख वीरों को मारे गये देख पाण्डवपक्ष के वीरों को बड़ी प्रसन्नता हुई थी। गाण्डीवधारी अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण मृगों के यूथों को भयभीत करने वाले सिंह के समान कौरव सेनापतियों की सारी सेना को संत्रस्त करके अत्यन्त हर्ष से भरकर गर्जना करने लगे । तदनन्तर शस्त्रों के आघात से अत्यन्त क्षत-विक्षत अंगों वाले भीष्म, द्रोण, दुर्योधन, वाहिक तथा अन्य कौरव योद्धाओं ने सूर्यदेव को अपनी किरणों को समेटते देख और उस भयंकर ऐन्द्रास्त्र को प्रलयकर अग्नि के समान सर्वत्र व्याप्त एवं असंहार हुआ जानकर सूर्य की लीला से युक्त संध्या एवं निशा के आरम्भकाल का अवलोकन कर सेना को युद्धभूमि से लौटा लिया ।
धनंजय भी शत्रुओं को जीतर एवं लोक में सुयश और सुकिर्ति पाकर भाईयों तथा राजाओं के साथ सारा कार्य समाप्त करके निशा के आरम्भ में अपने शिविर को लौट गये । उस समय रात्रि के आरम्भ में कौरवों के दल में बडा भयंकर कोलाहल होने लगा। वे आपस में कहने लगे- ‘आज अर्जुन ने रणक्षेत्र में दस हजार रथियों का विनाश करके सात सौ हाथी मार डाले है। प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव सभी क्षत्रियगणों को मार गिराया। धनंजय ने जो महान् पराक्रम किया है, उसे दूसरा कोई वीर नहीं कर सकता । ‘श्रुतायु, राजा अम्बष्ठपति, दुर्भर्षण, चित्रसेन, द्रोण, कृप, जयद्रथ, बाल्हिक, भुरिश्रवा, शल्य और शल- ये तथा ओर भी सैकडों योद्धा क्रोध में भरे हुए लोकमहारथी, किरीटधारी कुन्तीकुमार अर्जुन के द्वारा रणभूमि में अपनी ही भुजाओं के पराक्रम से भीष्मसहित परास्त किये गये है’ ।भारत! उपर्युक्त बातें कहते हुए आपके समस्त सैनिक सहस्त्रों जलती हुई मसाले तथा प्रकाशमान दीपों के उजाले में अपने-अपने शिविर में गये। कौरवसेना के सम्पूर्ण सैनिकों पर अर्जुन का त्रास छा रहा था। इसी अवस्था में उस सेना ने रात में विश्राम किया ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में तीसरे दिन सेना के विश्राम के लिये लौटने से सम्बन्ध रखनेवाला उनसठवां अध्याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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