महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 60 श्लोक 15-29

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षष्ठितम (60) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षष्ठितम अध्याय: श्लोक 15-29 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर महान् प्रभावशाली वीर सूर्यदेव का प्रकाश देखकर सहसा शत्रुमण्डली पर टूट पड़े। रथी रथी से भिडकर सारथि, घोड़े, रथ ओर ध्वजसहित मरकर गिरने लगा । हाथी हाथी आघात और पैदल पैदल की चोट से धराशायी होने लगे। श्रेष्ठ घोड़ों के समुहपर उत्तम अश्वों के समुदाय आक्रमण-प्रत्याक्रमण करते थे। ये सवारों द्वारा किये हुए खगग ओर प्रासों के आघात से घायल होकर भयंकर और अदभुत दिखायी देते थे। स्वर्णमय तारागणों के चिन्हों से विभूषित सूर्य के समान चमकीले कवच फरसों, तलवारों और प्रासों की चोट से विदीर्ण होकर धरती पर गिर रहे थे ।दन्तार हाथियों के दांतों और सूंडो के आघात से रथ चूर-चूर हो जाने के कारण कितने ही रथी सारथि सहित धरती पर गिर पड़ते थे। कितने ही श्रेष्ठ रथियों ने बडे़-बडे़ हाथियो को अपने बाणों से मारकर धराशायी कर दिया ।हाथियों के वेग से कुचलकर कितने ही घुड़सवार और पैदल युवक मारे गये । वे उनके दांतो और नीचे के अंग से कुचलकर हताहत हो रहे थे। सहसा उनकी आर्त चीत्कार सुनकर सभी मनुष्‍यों को बड़ा खेद होता था । उस मुहूर्त में जब कि घुड़सवारों ओर पैदल युवकों का विकट संहार हो रहा था तथा हाथी, घोड़े और रथ सभी अत्यन्त घबराहट में पड़े हुए थे, महारथियों से घिरे हुए भीष्म ने वानरचिन्ह्र से युक्त ध्वजवाले अर्जुन को देखा ।
भीष्म का ध्वज चार तालवृक्षों से चिंहित और ऊॅचा था। उनके रथ में अच्छे घोड़े जूते हुए थे, जिन के वेग से वह रथ अदभुत शक्तिशाली जान पड़ता था। उस पर आरूढ़ होकर शान्तनुनन्दन भीष्म ने किरीटधारी अर्जुन पर धावा किया, जो बाण ओर अशनि आदि महान् दिव्यास्त्रों की दिप्ति से उदीप्त हो रहे थे ।राजन् ! इसी प्रकार इन्द्रतुल्य प्रभावशाली इन्द्रकुमार अर्जुन पर द्राणाचार्य, कृपाचार्य, शल्य, विविशति, दुर्योधन तथा भूरिश्रवा ने भी आक्रमण किया । तदनन्तर सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता, सोने के विचित्र कवच धारण करनेवाले शूरवीर अर्जुनपुत्र अभिमन्यु ने एक श्रेष्ठ रथ के द्वारा वेगपूर्वक वहां पहुंचकर उन समस्त कौरव महारथियो पर धावा किया ।अर्जुनकुमार का पराक्रम दूसरों के लिये असंहार था। वह उन कौरव महारथियों के बडे़-बडे़ अस्त्रों को नष्ट करके यज्ञ मण्डप में महान् मन्त्रों द्वारा हविष्य की आहुर्ति पाकर प्रज्वलित हुई ज्वालामालाओं से अलंकृत भगवान् अग्निदेव के समान शोभा पाने लगा । तदनन्तर उदार शक्तिशाली भीष्म ने रणभूमि में तुरन्त ही शत्रुओं के रक्तरूपी जल एवं फेन से भरी नहीं बहाकर सुभद्राकुमार अभिमन्यु को टालकर महारथी अर्जुन पर आक्रमण किया ।तब किरीटधारी अर्जुन ने हंसकर अदभुत पराक्रम दिखाते हुए गाण्डीव धनुष से छोडे़ और शिला पर रगड़कर तेज किये हुए विपाठ नामक बाणों के समूह से शत्रुओं के बडे़-बडे़ अस्त्रों के जाल को छिन्न-भिन्न कर दिया ।तत्‍पश्‍चात अप्रतिहत पराक्रम वाले महामना कपिध्वज अर्जुन ने सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ भीष्म पर तुरन्त ही निर्मल भल्लों तथा बाणसमुहों की वर्षा आरम्भ कर दी ।इसी प्रकार आपके सैनिकों ने देखा कि आकाश में कपिध्वज अर्जुन के बिछाये हुए महान् अस्त्रजाल को भीष्मजी ने अपने अस्त्रो के आघात से उसी प्रकार छिन्न-भिन्न कर दिया, जैसे भगवान् सूर्य अन्धकार राशि को नष्ट कर देते है । इस तरह सत्पुरूषों में श्रेष्ठ भीष्म और अर्जुन में धनुषों की भयंकर टंकार से युक्त, दैन्यरहित द्वैरथ-युद्ध होने लगा, जिसे कौरव और सृजय वीरो तथा दूसरे लोगों ने भी देखा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में भीष्म ओर अर्जुन के द्वैरथ-युद्ध से सम्बन्ध रखने वाला साठवां अध्याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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