महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 135 श्लोक 18-34

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चतुस्त्रिंशदधिकशतकम (134) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: चतुस्त्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद

सुजय ! खोटी बुद्धि वाले दुर्योधन ने सभा में बारंबार कहा था ‘कर्ण, दुःशासन तथा मैं - तीनों मिलकर युद्ध में अवश्य पाण्डवों को जीत लेंगे’। परंतु अब कर्ण को भीमसेन के द्वारा पराजित और रथहीन हुआ देख श्रीकृष्ण की बात न मानने के कारण मेरा वह पुत्र निश्चय ही बड़ा भारी पश्चात्ताप कर रहा होगा। अपने कवचधारी भ्राताओं को युद्ध में भीेमसेन के द्वारा मारा गया देख मेरे पुत्र को अपने अपराध के लिये अवश्य ही महान् अनुताप हो रहा होगा। अपने जीवन की इच्छा रखने वाला कौन पुरुष क्रोध में भरकर साक्षात काल के सामने खड़े हुए भयानक अस्त्र शस्त्रधारी पाण्डु पुत्र भीमसेन के विरुद्ध युद्ध में जो सकता है। मेरा तो ऐसा विश्वास है कि बड़वानल केे मुख में पड़ा हुआ मनुष्य शायद जीवित बच जाय; परंतु भीमसेन के सम्मुख युद्ध के लिये आया हुआ कोई भी सूरमा जीवित नहीं छूट सकता। सूत ! युद्ध में क्रुद्ध होने पर पाण्डव, पान्चाल, श्रीकृष्ण तथा सात्यकि - ये कोई भी शत्रु के जीवन की रक्षा करना नहीं जानते हैं। अहो ! मेरे पुत्रों का जीवन भारी विपत्ति में पड़ गया है।
संजय ने कहा - कुरु नन्दन ! यह महान् भय जब सिर पर आ गया है, तब आप शोक करने बैठे हैं, यह ठीक नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस जगत् के विनाश का मूल कारण आप ही हैं। पुत्रों की हाँ में हाँ मिलाकर आपने स्वयं ही इस महान् वैर की नींव डाली है और जब इसे मिटाने के लिये आपसे किसी ने कोई बात कही, तब आपने उसे नहीं माना, ठीक उसी तरह, जैसे मरणासन्न मनुष्य हितकारक औषध नहीं ग्रहण करता है । नरश्रेष्ठ ! महाराज ! जिसको पचाना अत्यन्त कठिन है, उस कालकूट विष को स्वयं पीकर अब उसके सारे परिणामों को आप ही भोगिये। श्ुद्ध में लगे हुए महाबली योद्धाओं को जो आप कोस रहे हैं, वह व्यर्थ है। अब किस प्रकार वहाँ युद्ध हुआ था, वह सब आपको बता रहा हूँ, सुनिये।
भरत नन्दन ! कर्ण को भीमसेन से पराजित हुआ देख आपके पाँच महाधनुर्धर पुत्र जो परस्पर सगे भाई थे, सह न सके। उन पाँचों के नाम ये हैं - दुर्मर्षण, दुःसह, दुर्मद, दुर्धर ( दुराधर ) और जय। इन सबने विचित्र कवच धारण करके अपने विरोधी पाण्डु पुत्र भीमसेनद पर आक्रमण किया। उनहोंने महाबाहु भीमसेन को चारों ओर से घेरकर टिड्डी दलों के समान अपने बाण समूहों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। उन देवतुल्य राजकुमारों को सहसा देख समर भूमि में भीमसेन ने हँसते हुए से उनका आघात सहन किया। आपके पुत्रों को भीमसेन के सामने गया हुआ देख राधा नन्दन कर्ण पुनः महाबली भीमसेन का सामना करने आ पहुँचा। वह शान पर चढत्राकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखों से युक्त पैने बाणों की वर्षा कर रहा था। उस समय आपके पुत्रों द्वारा रोके जाने पर भी भीमसेन तुरंत ही कर्ण के साथ युद्ध करने के लिये आगे बढ़ गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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