महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 135 श्लोक 1-17

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पञ्चत्रिंशदधिकशतकम (135) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: पञ्चत्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

धृतराष्ट्र का खेद पूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा करना तथा भीम के द्वारा दुर्मर्षण आदि धुतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध

धृतराष्ट्र ने कहा - संजय ! मैं तो दैव को ही बड़ा मानता हूँ। पुरुषार्थ तो व्यर्थ है। उसे धिक्कार है; क्योंकि उसमें स्थित हुआ अधिरिथ पुत्र कर्ण सब प्रकार से प्रयत्न करके भी रण क्षेत्र में पाण्डु नन्दन भीम से पार न पा सका। ‘कर्ण युद्ध सथल में कृष्ण सहित समस्त कुन्ती कुमारों को जीतने का उत्साह रखता है। मैं संसार में कर्ण के मसान दूसरे किसी योद्धा को नहीं देख रहा हूँ’। इस प्रकार दुर्योधन के मुँह से मैंने बारंबार सुना है। सूत ! मूर्ख दुर्योधन ने पहले मुझसे यह भी कहा था कि ‘कर्ण बलवान्, याूरवीर, सुदृढ़ धनुर्धर औरयुद्ध में श्रम तथा थकावट पर विजय पाने वाला है। राजन् ! कर्ण के साथ रहने पर समर भूमि में मुझे देवता भी परास्त नहीं कर सकते; फिा शक्तिहीन और विवेकशून्स पाण्डव मेरा क्या कर सकते हैं ?’ परंतु रण क्षेत्र में विषहीन सर्प के समान कर्ण को पराजित और युद्ध मे भागा हुआ देखकर दुर्योधन ने क्या कहा था। अहो ! दुर्योधन ने माहित होकर युद्ध की कला से अनभिज्ञ दुर्मुख को अकेले ही पतंग की भाँति आग में झोंक दिया।
संजय ! अश्वत्थामा, मद्रराज शल्य, कृपाचार्य और कर्ण - ये सब मिलकर भी निश्चय ही भीम के सामने नहीं ठहर सकते। वे भी वायु के तुल्य तेजस्वी भीमसेन के दस हजार हाथियों के समान अत्यन्त घोर बल को तथा उनके क्रूरतापूर्ण निश्चय को जासने हैं; उनके बल, पराक्रम और क्रोध से परिचित हैं। ऐसी दशा में वे यम, काल और अन्तक के समान क्रूर कर्म करने वाले भीमसेन को युद्ध में अपने ऊपर कैसे कुपितकरेंगे ? अकेला सूत पुत्र महाबाहु कर्ण ही अपने बाहुबल के घमंड में भरकर भीमसेन का तिरस्कार करके रण भूमि में उनके साथ जूझता रहा। जिन्होंने समरांगण में असुरों पर विजय पाने वाले देवराज इन्द्र के समान कर्ण को पराजित कर दिया, उन पाण्डु पुत्र भीमसेन को कोई भी युद्ध में जीत नहीं सकता।
जो भीमसेन अकेले ही द्रोधाचार्य को मथकर धनंजय का पता लगाने के लिये मेरी सेना में घुस आये, उनका सामना करने के लिये जीवित रहने की इच्छा वाला कौन पुरुष जा सकता है ? संजय ! जैसे हाथ में वज्र लिये हुए देवराज इन्द्र के सामने कोई दानव खड़ा नहीं हो सकता, उसी प्रकार भीमसेन के सम्मुख भला कौन ठहर सकता है ? मनुष्य यमलोक में भी जाकर लौट सकता है; परंतु युद्ध में भीमसेन के सामने जाकर कदापि जीवित नहीं लौट सकता। मेरे जो मन्द बुद्धि पुत्र मोहित होकर क्रोध में भरे हुए भीमसेन की ओर दौड़े थे, वे पतंगों के समान मानो आग में ही कूद पड़े थे। क्रोध में भरे हुए भयंकर भीमसेन ने सभा भवन में उस दिन समस्त कौरवों के सुनते हुए मेरे पुत्रों के वध के सम्बन्ध में जो प्रतिज्ञा की थी, उसका विचार करके और कर्ण को पराजित देखकर अपने भाई दुर्योधन सहित दुःशासन निश्चय ही भय के मारे भीमसेन से दूर हट गया होगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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