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Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) ('तन सीमाओं में रोये मन अनन्त मदमस्त, माया अधरों की जाम...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
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०८:३५, २१ अक्टूबर २०१३ के समय का अवतरण
तन सीमाओं में रोये
मन अनन्त मदमस्त,
माया अधरों की जाम
पाप पुण्य में व्यस्त,
सत-मन चाप यदि, न तानूँ तो क्या ?
क्यूँ किसको मानूँ , न मानूँ तो क्या ?
नयन ज्ञान स्तम्भ
और दृष्टि परे की बात,
बिन नीव के अजान
किस स्रष्टा के साथ
वेद-कुरआन खिचड़ी,न जानूँ तो क्या ?
क्यूँ किसको मानूँ , न मानूँ तो क्या ?
रूखा सूखा तन काटे
उपवन मन हत्यारा,
सत्य निकट विलम्बित
झूठ दूर का प्यारा
नभ ,नक्षत्र, मही, न छानूँ तो क्या ?
क्यूँ किसको मानूँ , न मानूँ तो क्या ?