अंतरपणन
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अंतरपणन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 38 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. अमर नारायण अग्रवाल |
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अंतरपणन किसी प्रतिभूति, वस्तु या विदेशी विनिमय को सस्ते बाजार में खरीदना और साथ ही साथ तेज बाजार में बेचना अंतरपणन कहलाता है। इसका उद्देश्य विभिन्न व्यापारिक केंद्रों में प्रचलित मूल्यों के अंतर से लाभ उठाना होता है। अंतरपणन इस कारण संभव होता है कि एक ही समय विभिन्न बाजारों में उसी प्रतिभूति, वस्तु या विदेशी चलन के विभिन्न मूल्य होते हैं; और इसका परिणाम समस्त बाजारों के मूल्यों में समानता स्थापित करना होता है। अंतरपणन के लिए यह आवश्यक है कि संदेशवहन के शीघ्र साधन विद्यमान हों और संबंधित बाजारों में तुरंत ही आदेश पालन कराने का समुचित प्रबंध हो। अंतरपणकर्ता चाहे तो प्रतिभूति, वस्तु या विदेशी चलन भेज दे और बदले में आवश्यक धनराशि मँगा ले, चाहे वह उस राशि को बाजार में जमा रहने दे, जिससे भविष्य में उस बाजार में क्रय होने पर वह काम आ सके।
स्वर्ण मूल्य एवं व्यय
सोने का अंतरपणन करने के लिए यह आवश्यक होता है कि विभिन्न देशों के बाजारों में सोने के मूल्य की बराबर जानकारी रखी जाए, जिससे वह जहाँ भी सस्ता मिले, वहाँ से खरीदकर अधिक मूल्य वाले बाजार में बेच दिया जाए। सोना खरीदते समय क्रय मूल्य में निम्नलिखित व्यय जोड़े जाते हैं:
- क्रय का कमीशन
- सोना विदेश भेजने का किराया
- बीमे की किस्त
- पैकिंग व्यय
- कांसुली बीजक लेने का व्यय, तथा
- भुगतान पाने तक का ब्याज।
इसके साथ में सोना बेचकर जो मूल्य मिले, उसमें से निम्नलिखित मद घटाए जाते हैं:
- सोना गलाने का व्यय (यदि आवश्यक हो)
- आयात कर और आयात संबंधी अन्य व्यय तथा
- बैंक कमीशन
विनिमय दर
इन समायोजनाओं के पश्चात् यदि विक्रय राशि क्रय राशि से अधिक हुई, तभी लाभ होगा। सामान्यत लाभ की दर बहुत कम होती है, और उपर्युक्त अनुमानों तथा गणनाओं में तनिक भी त्रुटि होने से लाभ हानि में परिवर्तित हो सकता है। इसके अतिरिक्त दो देशों के चलन परिवर्तन की दर में, जिसे विनिमय दर कहते हैं, घट-बढ़ होती रहती है, और उसमें तनिक भी प्रतिकूल घटबढ़ हानि का कारण बन सकती है। अत अंतरपणकर्ता को उपर्युक्त समस्त बातों का ज्ञान होना चाहिए; उसमें तुरंत निर्णय करने की योग्यता और भविष्य का यथार्थ अनुमान लगाने की सामर्थ्य भी होनी चाहिए। इतना होने पर भी कभी-कभी जोखिम का सामना करना पड़ता है।
विनिमय-समकरण-कोश
विदेशी चलन तथा प्रतिभूतियों में भी अंतरपणन इसी प्रकार किया जाता है। विदेशी चलन में अंतरपणन बहुधा दो से अधिक बाजारों को सम्मिलत करके होता है जिसमें मूल्यों के अंतर से पर्याप्त लाभ उठाया जा सके। हाल ही में विभिन्न देशों में विनिमय-समकरण-कोश स्थापित कर दिए गए हैं और उनके अधिकारी विनिमय दरों को स्थिर कर देते हैं। फलस्वरूप अंतरपणन से लाभ उपार्जित करने के अवसर प्राय समाप्त हो जाते हैं। प्रतिभूतियों में अंतरपणन बहुधा विषम होता है और उसमें जोखिम भी अधिक होती है।
एकसमान मूल्य
अंतरपणन के द्वारा प्रतिभूतियों, वस्तुओं या विदेशी विनिमय के मूल्य संसार भर में लगभग समान हो जाते हैं। अनेक अंतरपणनकर्ताओं की क्रियाओं के फलस्वरूप अंतरराष्ट्रीय बाजार स्थापित हो जाते हैं, और बने रहते हैं जिससे क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बहुत सुविधा होती है। जहाँ तक वस्तुओं का संबंध है, अंतरपणन के द्वारा वस्तुओं का निर्यात अधिपूर्ति के देश से अभाव के देशों में होता रहता है जिससे आवश्यक वस्तुओं का यथोचित वितरण संसारव्यापी आधार पर हो जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ