अंतरराष्ट्रीय मुद्रा निधि
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रानिधि की स्थापना 27 दिसंबर, 1945 को एक स्वतंत्र संगठन के रूप में हुई थी और 15 नवंबर, 1947 को लागू हुए एक सहमति पत्रक में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य राष्ट्रों ने संघ से इसके संबंधों की व्याख्या की दी। सन् 1962 में फंड ने एक ऐसी व्यवस्था की, जिसके अनुसार बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, स्वीडेन, ब्रिटेन तथा संयुक्त राष्ट्र अमरीका अंतर्राष्ट्रीय भुगतान व्यवस्था की गड़बड़ी की स्थिति में फंड को धनराशि प्रदान करेंगे। 1975 तक यह व्यवस्था रहेगी।
उद्देश्य
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहकार तथा विनिमय की स्थिरता, मुद्रा विनिमय की कठिनाइयों के दूरीकरण और बहुपार्श्वीय भुगतान की व्यवस्था में सहयोग देना, रोजगार और आय के उच्च स्तर कायम करने के लिए विश्व व्यापार के विस्तार में सहायक होना तथा सदस्य राष्ट्रों के उत्पादन के साधनों में विकास करना, इस मुद्रा निधि के उद्देश्य हैं। सदस्य राष्ट्र अपनी विदेशी मुद्रा नीतियों में परिवर्तन के समय इससे राय लेते हैं और निधि द्वारा, समुचित सुरक्षा के विश्वास के बाद, सदस्य राष्ट्रों को भुगतान की अल्पकालिक तथा मध्यकालिक व्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा विनिमय के उपलब्ध स्रोतों से सहायता की जाती है।
प्रतिनिधि
निधि की सर्वोच्च सत्ता बोर्ड ऑव गवर्नर्स के हाथ में है, जिसमें प्रत्येक सदस्य राष्ट्र का प्रतिनिधि होता है। इसकी बैठक वर्ष में एक बार होती है। अधिशासी संचालक (संप्रति 6 नियुक्त और 14 अप्रतिनिधित्व वाले देशों से) विधि का सामान्य कार्य संचालन करते हैं। ये लोग मिलकर एक प्रबंध संचालक का चयन करते हैं, जो सामान्यत पाँच वर्षों तक पदासीन रहता है। इसका मुख्य कार्यालय वाशिंगटन में है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ