अंत्याक्षरी
अंत्याक्षरी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 55 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवतीशरण उपाध्याय। |
अंत्याक्षरी प्राचीन काल से चला आता स्मरणशक्ति का परिचायक एक खेल जिसमें कहे हुए श्लोक या पद्य के अंतिम अक्षर को लेकर दूसरा व्यक्ति उसी अक्षर से आरंभ होने वाला श्लोक या पद्य कहता है, जिसके उत्तर में फिर पहला व्यक्ति दूसरे के कहे श्लोक या पद्य के अंतिम अक्षर से आरंभ होने वाला श्लोक या पद्य कहता है। इसी प्रकार यह खेल चलता है और जब अपेक्षित व्यक्ति की स्मरण शक्ति जवाब दे जाती है और उससे पद्यमय उत्तर नहीं बन पाता तब उसकी हार मान ली जाती है। यह खेल दो से अधिक व्यक्तियों के बीच भी वृत्ताकार रूप में खेला जाता है। विद्यार्थियों में यह आज भी प्रचलित है और अनेक संस्थाओं में तो इसकी प्रतियोगिता का आयोजन भी होता है। अंत्याक्षरी के उदाहरणार्थ रामचरितमानस से तीन चौपाइयाँ नीचे दी जाती हैं जिनमें अगली चौपाई पिछली के अंत्याक्षर से आरंभ होती हैं:
बोले रामहिं देइ निहोरा। बचौं विचारि बंधु लघु तोरा।।
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत स्रवन पाइअ बिस्रामा।।
मातु समीप कहत सकुचाहीं। बोले समय समुझि मन माहीं।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ