अक्रिय गैस
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अक्रिय गैस
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 68 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | निरंकार सिंह।। |
अक्रिय गैस उन गैसों को कहते हैं जो साधारणत रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग नहीं लेतीं और सदा मुक्त अवस्था में प्राप्य हैं। इनमें हीलियम, निऑन, आर्गान, जीनॉन और रडॉन सम्मिलित हैं। ये उत्कृष्ट गैसों (Noble gases) के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। समस्त अक्रिय गैसें रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन होती हैं। स्थिर दाब और स्थिर आयतन पर प्रत्येक गैस को विशिष्ट उष्माओं का अनुपात १.६७ के बराबर होता है जिससे पता चलता है कि ये सब एक परमाणुक गैसें हैं। उक्त गैसों के उपयोग निम्नलिखित हैं:
हीलियम, यह गुब्बारों और वायुपोतों में भरने के काम में आती है। गहरे समुद्र में गोता लगाने वाले साँस लेने के लिए वायु के स्थान पर हीलियम और आक्सीजन का मिश्रण काम में लाते हैं। धातु कर्म में जहाँ अक्रिय वायुमंडल की आवश्यकता होती है, हीलियम का प्रयोग किया जाता है। वायु से यह बहुत हल्की होती है अत बड़े-बड़े हवाई जहाजों के टायरों में इसी गैस को भरा जाता है।
नीऑन, बहुत कम दाब पर नीआन से भरी ट्यूबों में से विद्युत गुजारने पर नारंगी रंग की चमक पैदा होती है जिसका विद्युत संकेतों में उपयोग किया जाता है।
आर्गान २६ प्रतिशत नाइट्रोजन के साथ मिलाकर आर्गान विद्युत के बल्बों में तथा रेडियो वाल्बों और ट्यूबों में प्रयुक्त होती है।
क्रिप्टान और जीनॉन इनका प्रयोग किसी काम में नहीं होता।
रेडान यह घातक फोड़ों और ठीक न होने वाले घावों के इलाज में काम आती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ