अग्नि परीक्षा
अग्नि परीक्षा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 75,76 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | बलदेव उपाध्याय। |
अग्नि परीक्षा भारत तथा भारतेतर देशों में अग्नि द्वारा स्त्रियों के सतीत्व का तथा अपराधियों के निर्दोष होने का परीक्षण अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। इसे ही अग्नि परीक्षा कहा जाता है। परीक्षा का मूल हेतु यह है कि अग्नि जैसे तेजस्वी पदार्थ के संपर्क में आने पर जो वस्तु या व्यक्ति किसी प्रकार का विकार नहीं प्राप्त करता, वह वस्तुत विशुद्ध, दोषरहित तथा पवित्र होता है। भारतवर्ष में भगवती सीता की अग्निपरीक्षा इस विषय का नितांत प्रख्यात दृष्टांत है। स्त्रियों के सतीत्व की अग्निपरीक्षा का प्रकार यह है कि संदिग्ध चरित्रवाली स्त्री सो हलका लोहे का फार आग में खूब गरम कर जीभ से चाटने के लिए दिया जाता था। यदि उसका मुँह नहीं जलता, तो वह सती समझी जाती थी। प्राचीन भारत के समान यूरोप में भी चोरों के दोषादोष की परीक्षा आग के द्वारा की जाती थी। अंग्रेजी में इसे आरडियल कहते हैं तथा संस्कृत में दिव्य।
स्मृतियों में दिव्यों के अनेक प्रकार निर्दिष्ट किए गए हैं जिनमें अग्निपरीक्षा अन्यतम प्रकार है। इसकी प्रक्रिया इस प्रकार है- पश्चिम से पूरब की ओर गाय के गोबर से नौ मंडल बनाना चाहिए जो अग्नि, वरुण, वायु, यम, इंद्र, कुबेर, सोम, सविता तथा विश्वदेव के निमित्त होते हैं। प्रत्येक चक्र १६ अंगुल के अर्धव्यास का होना चाहिए और दो चक्रों का अंतर १६ अंगुल होना चाहिए। प्रत्येक चक्र को कुश से ढकना चाहिए जिस पर शोध्य व्यक्ति अपना पैर रखे। तब एक लोहार 50 पल वजन वाले तथा आठ अंगुल लंबे लोहे के पिंड को आग में खूब गरम करें। परीक्षक न्यायाधीश शोध्य व्यक्ति के हाथ पर पीपल के सात पत्ते रखे और उनके ऊपर अक्षत तथा दही डोरों से बाँध दे। तदनंतर उसके दोनों हाथों पर तप्त लौह पिंड सँडसी से रखे जाएँ और प्रथम मंडल से लेकर अष्टम मंडल तक धीरे-धीरे चलने के बाद वह उन्हें नवम मंडल के ऊपर फेंक दे। यदि उसके हाथों पर किसी प्रकार की न तो जलन हो और न फफोला उठे, तो वह निर्दोष घोषित किया जाता था। अग्निपरीक्षा की यही प्रक्रिया सामान्य रूप से स्मृति ग्रंथों में दी गई है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ