अजातशत्रु

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लेख सूचना
अजातशत्रु
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 84
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक चंद्रचूड़ मणि,सदगोपाल ।

अजातशत्रु (1) (लगभग 495 ई. पू.) मगध का एक प्रतापी सम्राट और बिंबिसार का पुत्र जिसने बौद्ध परंपरा के अनुसार पिता को मारकर राज्य प्राप्त किया। उसने अंग, लिच्छवि, वज्जी, कोसल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। पालि ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है; क्योंकि वह बुद्ध का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। गंगा और सोन के संगम पर पाटलिपुत्र की स्थापना उसी ने की थी। उसका मंत्री वस्सकार कुशल राजनीतिज्ञ था जिसने लिच्छवियों में फूट डालकर साम्राज्य का विस्तार किया था। कोसल के राजा प्रसेनजित को हराकर अजातशत्रु ने राजकुमारी वजिरा से विवाह किया था जिससे काशी जनपद स्वत यौतुक रूप में उसे प्राप्त हो गया था। इस प्रकार उसकी इस विजिगीषु नीति से मगध शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। परंतु पिता की हत्या करने के कारण इतिहास में वह सदा अभिशप्त रहा। प्रसेनजित का राज्य कोसल के राजकुमार विडूडभ ने छीन लिया था। उसके राजत्वकाल में ही विडूडभ ने शाक्य प्रजातंत्र का ध्वंस किया था। अजातशत्रु के समय की सबसे महान घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण थी (464 ई. पू.)। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजात शत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने राजगृह की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया। आगे चलकर राजगृह में ही वैभार पर्वत की सप्तपर्णी गुहा से बौद्ध संघ की प्रथम संगीति हुई जिसमें सुत्तपिटक और विनयपिटक का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ। ।

अजातशत्रु (2) बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार काशी का एक अत्यंत प्राचीन राजा जिसे अजात शत्रु काश्य अथवा अजातरिपु भी कहते हैं। इसने गार्ग्य बालाकि ऋषि को वाद-विवाद में परास्त कर ज्ञानोपदेश दिया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सं. ग्रं.- त्रिपिटक (दीघनिकाय, महापरिनिब्बान सुत्तंत, संयुत्तनिकाय); जातक; सुमंगल बिलासिनी; आर्य मंजुश्री मूलकल्प; ए डिक्शनरी ऑव पालि प्रॉपर नेम्स (मलालसेकर),(द्र. जनक विदेह)।