अतिशीतन और अतितापन
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अतिशीतन और अतितापन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 90 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | निरंकार सिंह। |
अतिशीतन और अतितापन (सूपरकूलिंग ऐंड सूपरहीटिंग) अधिकांश द्रव यदि पूर्णत स्वच्छ बर्तन में बहुत धीरे-धीरे ठंडे किए जाएँ तो अपने सामान्य हिमांक से नीचे तक बिना संपिंड हुए पहुँच जाते हैं। यह क्रिया अतिशीतन कहलाती है। पानी- 10° सें. से भी नीचे तक अतिशीतित किया जा सकता है। दीउफ़् ने क्लोरोफ़ार्म और मीठे बादाम के तेल के एक मिश्रण में, जिसका घनत्व पानी के घनत्व के बराबर था, एक छोटी सी पानी की बूँद लटका दी, और बिना संपीडन के- 20° सें. तक उसे शीतल कर दिया।
वास्तव में अतिशीतन एक अस्थायी क्रिया है। अतिशीतित द्रव मे तत्संगत पिंड का एक अति अल्प कण भी डाल देने से या बर्तन को हिला देने से संपीडन चालू हो जाता है और जब तक निकली हुई गुप्त उष्मा उसके ताप को सामान्य हिमांक तक न ले आए तब तक चलता रहता है। हवा की अनुपस्थिति अतिशीतन में सहायक होती है।
अतितापन भी ऐसे ही एक अस्थायी क्रिया है। विलीन वायु से स्वतंत्र पानी को एक स्वच्छ बर्तन में सावधानी से गरम करने से ताप 100° सें. से कई डिग्री ऊपर तक पहुँच सकता है और पानी खौलता नहीं। लेकिन इस स्थिति में यदि उसे हिला दिया जाए तो वह एक दम से खौलने लगता है और गुप्त ऊष्मा व्यय होने से ताप भी 100° सें. आ जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ