अनुवाद
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अनुवाद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 126,127 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | मोहनलाल तिवारी । |
अनुवाद शब्द का अर्थ सामान्यत: व्याख्या या विश्लेषण है। असका अर्थ पूर्वकथित बात का विश्लेषण या उल्लेख या एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपांतरण करना माना जाता है। संस्कृत साहित्य में विशेष रूप से ब्राह्मण ग्रंथों का वह भाग अनुवाद माना जाता है जिसमें पूर्वोक्त निर्देंश या विधि व्याख्या, चित्रण या टीका निहित होती थी और जो स्वयं कोई विधि या निदेश नहीं होता था। किसी कथन के पश्चात् किया गया 'वाद' ही अनुवाद था। कभी आचार्य अनुवाद करते थे, कभी कोई दक्ष शिष्य।
आधुनिक साहित्य में अनुवाद शब्द के अर्थ का विकास या परिवर्तंन हो जाने के कारण प्राचीन अर्थ मान्य नहीं रह गया हैं। अब एक भाषा में लिखे या कहे हुए विषय को दूसरी भाषा में रूपांरित करना अनुवाद कहा जाता है। यह कला सिर्फ लिखित भाषा के समान ही प्राचीन नहीं है, बल्कि मानव भाषा के समान अतिप्राचीन काल से इसका अस्तित्व संभव माना जा सकता है; तब से किसी चतुर दुभाषिए ने उच्चरित भाषा या संकेत भाषा की सहायता से एक भाषाभाषी के कथ्य को दूसरे भाषाभाषी तक पहुँचाना होगा। पश्चिमी जगत् में प्राचीनतम लिखित साहित्य के अनुवाद रूप में सुमेरियन गिल्गमिश नामक प्राचीन काव्य के अंशों का ई.पू. दूसरी शती की चार पाँच एशियाई भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध होता है। पश्चिमी जगत् में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनुवाद सप्तुआजिंत (Septuagint)ग्रंथ का है, जो यहूदियों के आर्षग्रंथ का ग्रीक भाषा में अनुवाद है। सिकंदर के समय में यूनान और भारत का सांस्कृतिक संबंध स्थापित होने से (ई.पू. 327 ई.) अनेक भारतीय ग्रंथों एवं विज्ञानों की ग्रीक भाषा में अनुवाद हुआ। इसी समय से भारतीय गणित का शून्य यूरोप में लोकप्रिय हुआ। इससे भी पूर्व बौद्ध साहित्य का पाली में प्रणयन होने से संस्कृत पाली में परस्पर अनुवाद क्रिया का आरंभ हुआ। बौद्धों के प्रभाव एवं प्रयास से अनेक भारतीय ग्रंथों का अनुवादकार्य चीनी, तिब्बती भाषाओं में संपन्न हुआ। अरबों के सिंध में आगमन से गणित और आयुर्वेद के कतिपय अंशों का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ। जब अरबों ने यूरोप विजय किया तो अरबी से पुर्तगीज, इतालियन, लैटिन, ग्रीक आदि में अनेक लिखित साहित्य की उपयोगी बातों का अनुवादकार्य प्रारंभ हुआ और इसमें वृद्धि हुई। मध्यकाल में जब सामंतों और शासकों ने पांडुलिपियों को खरीदना शुरु किया तो अनुवादकार्य को प्रोत्साहन मिला। इससे शैक्षणिक कार्य को भी आर्थिक प्रोत्साहन मिला। अनुवाद की दृष्टि से आधुनिक काल अत्यंत उपयोगी रहा है। यूरोपीय साम्राज्यवाद के विस्तार ने अनेक सभ्यताओं और साहित्यों को एक दूसरे से जोड़ दिया, जिसके फलस्वरूप अनेक भाषाओं के ग्रंथों का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनी, पुर्तगीज और जर्मन में तथा इनसे अन्य भाषाओं में हुआ। रूस और चीन की साम्यवादी क्रांति ने मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्टालिन और माओ त्से तुंग के अनेक ग्रंथों का अनुवाद विश्व की प्राय: सभी प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध करा दिया है। विज्ञान की अच्छी और उपयोगी पुस्तकों का अनुवाद भी राष्ट्रीय माध्यमभाषाओं में होने लग गया है। आजकल विज्ञान की सहायता से अनुवाद की कंप्यूटर जैसी मशीनों का आविष्कार हो गया है। बहुभाषी देशों की संसदों, संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा अन्य अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में मशीनों द्वारा एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवादकार्य अविलंब संपन्न होने लग गया है। मशीनें अब एक भाषा से दूसरी भाषा में पुस्तकों का भी अनुवाद करने लगी हैं।
अनुवादकला की कुछ कठिनाइयाँ भी होती हैं। विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास जैसे विषयों का अनुवाद अपेक्षाकृत सुगम है क्योंकि इसमें शब्द की अभिधाशक्ति की और वाच्यार्थ की ही आवश्यकता पड़ती है; संकेतार्थ, गुह्मअर्थ अथवा शैलीगत विशिष्टता की कठिनाई नहीं रहती। किंतु दर्शन एवं सहित्य के ग्रंथों का अनुवादकार्य उतना सुगम नहीं होता। इनमें शब्द की व्यंजनाशक्ति, रचनाकार की मानसिक स्थिति, अर्थगत संकेत एवं संदर्भ की जटिलता बहुत बड़ी बाधाएँ होती हैं। केवल शब्दार्थ या शब्दकोश की सहायता से इन ग्रंथों का दो भाषाओं में परस्पर अनुवाद कठिन होता है। मशीन भी इन समस्याओं का सही समाधान नहीं दे पाती।
टीका टिप्पणी और संदर्भ