अन्यदेशी
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अन्यदेशी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 131 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | राजेंद्र अवस्थी । |
अन्यदेशी नकारात्मक ढंग से, अन्यदेशी वह है जिसे वह उस देश की, जिसमें वह आकर बसा है, नागरिकता न प्राप्त हो। अन्यदेशी के प्रति सामान्य दूष्टिकोण दो प्रकार के परस्पर विरोधी व्यवहारों का प्रतीक है: एक का आधार वर्ग की आत्मचेतना है जिसके कारण उस वर्ग के लोग अपने से अपरिचितों या विदेशियों के प्रति अविश्वास, भय तथा घृणा के भाव रखते हैं, दूसरे प्रकार का व्यवहार मानवता के प्रति आदर की उस भावना से संबंधित है जो आगंतुक या अतिथि के आदर सत्कार के लिए प्रेरित करती है। इन दोनों परस्पर विरोधी व्यवहारों के कारण विश्व के सामाजिक और आर्थिक इतिहास में अन्यदेशी की स्थिति भी दुहरी रही है।
प्राचीन काल की सभ्यता ने अनुमानत: पहली बार किसी निश्चित भूभाग पर एक साथ रहनेवाले लोगों की वर्गचेतना को श्रेष्ठ सांस्कृतिक मूल्य माना, और इस प्रकार अन्यदेशी को (अर्थात् जो उस भूभाग का नहीं है) 'बर्बर' ठहराया। मध्ययुग के अंत में यूरोपीय राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना के पूर्व तक अन्यदेशी के विरुद्ध स्थानीयता की प्राकृतिक संसक्ति थी। संसक्ति की इन इकाईयों में हुए परिवर्तनों के अनुरूप अन्यदेशी के विचार में भी परिवर्तन होते गए। प्राचीन काल के ग्रामसमाज में एक ग्राम के लिए पड़ोसी ग्राम का भूमिपति अन्यदेशी था, और इसलिए उसे स्थानीय संपत्ति के संबंध में सीमित अधिकार ही प्राप्त हो सकते थे। मध्ययुगीन नगरों में 'अन्यदेशी' का प्रयोग विदेशी व्यवसायियों के लिए होता था जिन पर एक विशेष प्रकार का अतिथिविधान लागू होता था। स्थानीयता के बाद सांस्कृतिक एकता ने अन्यदेशी के सिद्धांत को निश्चित किया। एक प्रकार की संस्कृति के लागों के लिए दूसरे प्रकार की संस्कृति के लोग 'बर्बर' या 'म्लेच्छ' थे। फिर, सभ्यता सल्यता के विकास के साथ आवागमन के साधनों की वृद्धि तथा विकास के कारण एक संस्कृति अपने आपको अपनी निश्चित सीमाओं में न बाँधे रख सकी और एक संस्कृति पर दूसरी संस्कृति का प्रभाव पड़ता रहा। फलत: सांस्कृतिक संसक्ति इतनी प्रभावशाली नहीं रह सकी कि उसके आधार पर दूसरी संस्कृति के लोगों को अन्यदेशी की संज्ञा दी जाए। आधुनिक युग में अब सांस्कृतिक एकता के बजाय वैचारिक एकता अन्यदेशी के विचार को स्पष्ट करने लिए अधिक उपयुक्त हैं। आज विश्व के राष्ट्रों को साधारणत: दो गुटों में बाँटा जाता है: अमरीकी और रूसी गुट; दूसरे शब्दों में, पूंजीवादी विचारधारा के पोषक तथा साम्यवादी सिद्धांत के अनुयायी। इस वैचारिक विभिन्नता के कारण रूस में एक ही महाद्वीप के निवासी होने के बावजूद एक अमरीकी दूसरे महाद्वीप के निवासी चीनी की तुलना में अधिक अन्यदेशी समझा जाएगा। भविष्य में, कादाचित् अन्यदेशी के विचार में एक नया परिवर्तन तब आएगा जब विज्ञान धरती के मनुष्य के लिए अन्य नक्षत्रों में भी पहुँचना सुगम कर देगा। तब अनुमानत: नक्षत्र की संसक्ति अन्यदेशी को निश्चित करने का आधार होगी।
अन्यदेशी एक नए, अपरिचित विदेशी वातावरण से घिरा रहता है, या यदि वह किसी अन्यदेशी वर्ग का अंग है तो उस वर्ग के साथ अपने तथा वहाँ के नागरिकों के बीच एक गहरी खाई का अनुभव करता है। इसीलिए साधारणत: उस देश की रीतियों और परंपराओं से स्वतंत्र रहना उसका एक प्रमुख लक्षण माना जाता है। परंपराओं से स्वतंत्र रहने के कारण अन्यदेशी वहाँ की सामाजिक परिस्थितियों के प्रति वस्तुगत (ऑब्जेक्टिब) दृष्टिकोण अपनाने में सफल होता है, जिसके आधार पर वह उस देश के नागरिकों की तुलना में वहाँ की सामाजिक परिस्थितियों के संबंध में अधिक न्यायसंगत निर्णय दे सकता है। परंतु साथ ही, अपने तथा वहाँ के नागरिकों के बीच विभिन्नताओं की खाई का अनुभव कर, वहाँ के सामाजिक जीवन को विदेशी मान, वह स्वभावत: उस देश के अल्पसंख्यक विरोधी दलों के साथ देने के लिए इच्छुक रहता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ