अपोलो
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अपोलो
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 147,48 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवतीशरण उपाध्याय। |
अपोलो ग्रीस के प्रधान देवताओं में से एक। सौंदर्य, तारुण्य, युद्ध और भविष्यकथन का देवता। प्राचीन ग्रीक नारी देल्फ़ी का विशेष आराध्य। अपोलो का जन्म, ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार, पिता देवराज ज्यूस् और माता लेतो से हुआ। ज्यूस् भारतीय इंद्र की भाँति अपत्नीगामी था और उसने जाए लेतो से प्रणय किया तो उसकी पत्नी हीरा ने लेतो का सर्वनाश करने की ठानी। उसने उस गर्भिणी पतिप्रिया को नाना प्रकार के दुख दिए और लेतो को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। अंत में समुद्र में बहते हुए शिलाद्वीप पर उसने उस पुत्ररत्न का प्रसव किया जो पौरुष और सौंदर्य का प्रतीक अपोलो नाम से ग्रीक और रोमन कथाओं में प्रसिद्ध हुआ। शक्ति, सत्य, न्याय, पवित्रता आदि नैतिक गुणों का वह प्रतिष्ठाता बना और उसकी कथाओं से ग्रीकों के पुराण भर गए।
वैसे तो ग्रीस और आयोनिया के अतिरिक्त द्वीपों और प्रधान भूमि पर जहाँ-जहाँ ग्रीक जातियों की बस्तियाँ थीं वहाँ-वहाँ सर्वत्र ही, पीछे रोम आदि के नगरों में भी, अपोलो के मंदिर बने; परंतु उसकी विशेष पूजा देल्फ़ी के नगर में प्रतिष्ठित हुई जहाँ प्राचीन काल में उसका सबसे प्रसिद्ध मंदिर खड़ा हुआ। ग्रीक इतिहास में विख्यात देल्फ़ी के भविष्यकथन, जिनका अतुल अधिकार छठी से चौथी शती ई.पू. के एथेंस् पर था, विशेषत: इसी देवता से संबंध रखते हैं। ग्रीकों का विश्वास था कि स्वयं अपोलो समसामयिक समस्याओं पर भविष्वाणी पवित्र पुजारिणी के मुंह से कराता है और उनकी राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं को अपनी वाणी से सुलझा देता है। देल्फ़ी में अपोलो के त्योहार से संबंधित कई दिनों तक चलनेवाले खेलों का सत्र हुआ करता था जो प्रसिद्ध ओलिंपियाई खेलों से किसी प्रकार घटकर न था।
दिओनिसस् को छोड़कर अपोलो के बराबर कोई दूसरा लोकप्रिय देवता ग्रीकों का उपास्य नहीं हुआ। और वह दियोनिसस् अथवा अफ्रोदीती की भाँति पौर्वात्य विश्वासों के आयात से भी उत्पन्न नहीं था, बल्कि ग्रीकों का निजी देवता था, उनके देवराज ज्यूस का पुत्र और भगिनी आतमिस् का जुड़वाँ भाई, जो ग्रीकों की ही भाँति बाण द्वारा लक्ष्यवेध में अनुपम कुशल था। अपोलो की प्राचीन काल में हजारों मूर्तियाँ बनीं। ग्रीक जहाँ गए---सिसली में, सीरिया में, पंजाब में---सर्वत्र उन्होंने अपने इस प्रिय देवता अपोलो की मूर्तियाँ बनाई। भारत के प्राचीन गंजाएर प्रदेश में भी---जहाँ पहली शती ई. की हिंदू यवन अथवा गांधार कला का जन्म हुआ---ग्रीक कलावंतों की छेनी के स्पर्श से पत्थर फूटा और अपोलो की अनेक मूर्तियाँ निर्मित हुईं। परंतु उस देवता की अभिराम, सम्मोहक और सर्वोत्तम मूर्तियाँ आज रोम और वातिकन के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। इन मूर्तियों में अपोलो का अत्यंत आकर्षक छरहरा तन, लगता है, साँचे में ढाल दिया गया हो, पत्थर का नहीं, धातु का बना हो।
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