अफगान
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अफगान
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 150,51 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमात्मा शरण । |
अफगान वे सब जात्योपजातियाँ जो प्राय: आधुनिक अफगानिस्तान, बलोचिस्तान के उत्तरी भाग तथा भारत के उत्तर पश्चिमी पर्वतखंडो मे बसती हैं। वंश अथवा प्राकृतिक दृष्टि से ये प्राय: तुर्क--ईरानी हैं और भारत के निवासियों का भी काफी मिश्रण इनमे हुआ है।
कुछ विद्धानो का मत है कि केवल दुर्रानी वर्ग के लोग ही सच्चे 'अफगान' हैं और वे उन बनी इसराइल फिरकों के वंशज हैं जिनको बादशाह नबूकद नज़ार फिलस्तीन से पकड़कर बाबुल ले गया था। अफगानों के यहूदी फिरकों क वंशधर होने का आधार केवल यह है कि खाँजहाँ लोदी ने अपने इतिहास 'अमख़जने अफगानी' मे 16 वीं सदी मे इसका पहले पहल उल्लेख किया था। यह ग्रंथ बादशाह जहाँगीर के राज्यकाल में लिखा गया था। इससे पहले इसका कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता। अफगान शब्द का प्रयोग अलबरूनी एवं उत्बी के समय, अर्थात् 10वीं शती के अंत से होना शुरू हुआ। दुर्रानी अफगानों के बनी इसराईल के वंशधर होने का दावा तो उसी परिपाटी का एक उदाहरण है जिसका प्रचलन मुसलमानों में अपने को मुहम्मद के परिवार का अथवा अन्य किसी महान् व्यक्ति का वंशज बतलाने के लिए हो गया था।
यद्यपि अफगानिस्तान के दुर्रानी एवं अन्य निवासी अपने ही को वास्तविक अफगान मानते हैं तथा अन्य प्रदेशों के पठानों को अपने से भिन्न बतलाते हैं, तथापि यह धरणा असत्य एवं निस्सार है। वास्तव मे 'पठान' शब्द ही इस जाति का सामूहिक जातिवाचक शब्द है। 'अफगान' शब्द तो केवल उन शिक्षित तथा सभ्य वर्गों में प्रयुक्त होने लगा है, जो अन्य पठानों की अपेक्षा उत्कृष्ट होने पर बड़ा गौरव करते हैं।
पठान शब्द 'पख़्तान' (ऋग्वैदिक पक्थान्) या 'पश्तान' शब्द का हिंदी रूपांतर है। पठान शब्द का प्रयोग पहले-पहल १६वीं शती में 'मख़ज़ने अफगानी' के रचचिता नियामतुल्ला ने किया था। परंतु, जैसा कहा जा चुका है, अफगान शब्द का प्रयोग बहुत पहले से होता आया था।
अफगान जाति के लोगों के उत्तरपश्चिम के पहाड़ी प्रदेशों तथा आसपास की भूमि पर फैले होने के कारण, उनके चेहरे मोहरे और शरीर की बनावट में स्थानीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। तथापि सामान्य रूप वे उँचे कद के हृष्ट पुष्ट तथा प्राय: गोरे होते हैं। उनकी नाक लंबी एवं नोकदार, बाल भूरे और कभी--कभी आँखें कंजी पाई जाती हैं।
थोड़े समय से ऊँचे वर्ग के पठान या अफगान सब फारसी बोलने लगे हैं। साधारण पठान 'पश्तो' भाषाभाषी हैं। अफगानिस्तान मे उनका प्राबल्य १८वीं सदी के मध्य से हुआ जब अहमदशह अब्दाली (दुर्रानी) ने उस देश पर अधिकार करके उसे 'दुर्रानी' साम्राज्य घोषित किया था।
इन अफगानों या पठानों के विभिन्न वर्गों को एक सूत्र में बाँधनेवाली इनकी भाषा 'पश्तो' है। इस बोली के समस्त बोलनेवाले, चाहे वे किसी कुल या जाति के हों, पठान कहलाते हैं।
समस्त अफगान एक सर्वमान्य अलिखित किंतु प्राचीन परंपरागत विधान के अनुयायी हैं। इस विधान का आदि स्रोत 'इब्रानी' है। परंतु उस पर मुस्लिम तथा भारतीय रीत्याचार का काफी प्रभाव पड़ा है। पठानों के कुछ नियम तथा सामाजिक प्रचलन राजपूतों से बहुत मिलते हैं। एक ओर अतिथि सत्कार, और दूसरी ओर शत्रु से भीषण प्रतिशोध, उनके जीवन के अंग हो गए हैं। ऊसर और सूखे पहाड़ी प्रदेशों के निवासी होने के कारण और निर्दय हो गए हैं। उनकी हिंस्र प्रवृत्ति धर्मांधता के कारण और भी उग्र हो गई है। किंतु उनके चरित्र में सौंदर्य तथा सद्गुणों की भी कमी नहीं है। वे बड़े वाक्चतुर, सामान्य परिस्थितियों में बड़े विनम्र और समझदार होते हैं। शायद उनके इन्हीं गुणों के कारण भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महात्मा गांधी के प्रभाव से महामान्य अफगान नेता अब्दुल गफ्फार खाँ के नेतृत्व में समस्त पठान जनता के चरित्र में ऐसा मौलिक एवं आश्चर्र्यजनक परिवर्तन हुआ कि वह 'अहिंसा' की सच्ची व्राती बन गई। इन अफगानों में ऐसा परिवर्तन होना इतिहास की एक अपूर्व एवं अनुपम घटना है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
सं.ग्रं.---नियामजुल्ला : मख़ज़ने अफगानी : बी. डॉर्न : हिस्ट्री ऑव अफगान्स; उत्बी : तारीखे यामिनी; मिहाजुद्दीन बिन सिराजुद्दीन : तबकाते नासिरी; बाबरनामा : मिर्जा मुहम्मद : तारीखे सुल्तानी (बंबई से प्रकाशित)।