अफजल खाँ
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अफजल खाँ
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 154 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | राजेन्द्र नागर। |
अफ़जल खाँ (मृत्यु 1659), यह मोहम्मदशाह का, एक शाही बावर्चिन के कुक्ष से उत्पन्न अवैध पुत्र कहा जाता है। उसकी गणना बीजापुर राज्य के श्रेष्ठतम सामंतों और सेनानायकों में थी। 1649 में वाई का राज्यपाल बनाया गया था और 1654 में कनकगिरि का। मुगलों के विरुद्ध तथा कर्नाटक युद्ध में उसने बड़ी वीरताका प्रदर्शन किया था, किंतु शीरा के कस्तूरीरंग को सुरक्षा का आश्वासन देकर भी उसका वध कर देने से उसके विश्वासघात की कुख्याति फैल गई थी। पतनोन्मुख बीजापुर एक ओर मुगलों से आतंकित था, दूसरी ओर शिवाजी के उत्थान ने परिस्थिति गंभीर बना दी थी। अफ़ज़ल खाँ स्वयं शाहजी तथा उनके पुत्रों से तीव्र वैमनस्य रखता था। अघा खाँ के विद्रोह से शाहजी को जानबूझकर समयोचित सहायता न देने से, उसके पुत्र शंभुजी की युद्धक्षेत्र में मृत्यु हो गई। शिवाजी को दबाने के लिए राजाज्ञा से अफ़ज़ल ने शहजी को बंदी बनाया।
शिवाजी के उत्थान के साथ-साथ बीजापुर की स्थिति बड़ी संकटाकीर्ण हो गई। राज्य की सुरक्षा के लिए शिवाजी को कुचलना अनिवार्य हो गया। अफ़जल खाँ ने शिवाजी को सर करने का बीड़ा उठाया। उसने घमंड में कहा कि अपने घोड़े से उतरे बगैर वह शिवाजी को बंदी बना लेगा। प्रस्थान के पूर्व बीजापुर की राजमाता बड़ी साहिबा ने उसे गुप्त संदेश भेजा कि सम्मुख युद्ध की अपेक्षा यह शिवाजी से मैत्री का बहाना कर धोखे से उसे जीवित या मृत बंदी बना ले। 12,000 सेना के साथ उसने शिवाजी के विरुद्ध प्रस्थान किया। कहते हैं, अभियान के पूर्व उसने अपने गाँव अफ़ज़लपुरा में अपनी 63 पत्नियों की हत्या कर दी थी। मराठों को आतंकित करने के लिए मार्ग में अत्यंत क्रूरता प्रदर्शित कर अनेक मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ अफ़ज़ल खाँ प्रतापगढ़ के सन्निकट पहुँच गया जहाँ शिवाजी सुरक्षित थे। जब प्रतापगढ़ पर आक्रमण करने को सामर्थ्य नहीं हुई तब अफ़ज़ल ने अपने प्रतिनिधि कृष्णजी भास्कर को कृत्रिम मैत्रीपूर्ण संधि का प्रस्ताव लेकर भेजा। अंतत: प्रतापगढ़ के निकट दोनों में भेंट होना तय हुआ। शिवाजी दो सेवकों के साथ एक हाथ में बिछुआ और दूसरे में बघनखा छिपाए अफ़ज़ल खां से भेंट करने गए। अफ़ज़ल खाँ ने आलिंगन करते समय एक हाथ से शिवाजी का गला घोंटने का प्रयत्न किया, दूसरे से छूरे का वार किया, किंतु वस्त्रों के नीचे लोहे की जाली पहने रहने के कारण वार खाली गया और शिवाजी ने अफ़जल खाँ का वध कर डाला।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ