अभिचार
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अभिचार
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 174 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री नागेंद्रनाथ उपाध्याय |
अभिचार सामान्य अर्थ हनन।
तंत्रों में प्राय: छह प्रकार के अभिचारों का वर्णन मिलता है
- मारण,
- मोहन,
- स्तंभन,
- विद्वेषण,
- उच्चाट्टन और
- वशीकरण।
मारण से प्राणनाश करने, मोहन से किसी के मन को मुग्ध करने, स्तंभन से मंत्रादि द्वारा विभिन्न घातक वस्तुओं या व्यक्तियों का निरोध, स्थितिकरण या नाश करने, विद्वेषण से दो अभिन्न हृदय व्यक्तियों में भेद या द्वेष उत्पन्न करने, उच्चाटन से किसी के मन को चंचल, उन्मत्त या अस्थिर करने तथा वशीकरण से राज या किसी स्त्री अथवा अन्य व्यक्ति के मन को अपने वश में करने की क्रिया संपादित की जाती की जाती है। इन विभिन्न प्रकार की क्रियाओं को करने के लिए अनेक प्रकार के तांत्रिक कर्मो के विधान मिलते हैं जिनमें सामान्य दृष्टि से कुछ घृणित कार्य भी विहित माने गए हैं। इन क्रियाओं में मंत्र, यंत्र, बलि, प्राणप्रतिष्ठा, हवन, औषधिप्रयोग आदि के विविध नियोजित स्वरूप मिलते हैं। उपर्युक्त अभिचार अथवा तांत्रिक षट्कर्म के प्रयोग के लिए विभिन्न तिथियों का का विधान मिलता है जैसे--मारण के लिए शतभिषा में अर्धरात्रि, स्तंभन के लिए शीतकाल, विद्वेषण के लिए ग्रीष्मकालीन पूर्णिमा की दोपहर, उच्चाटन के लिए शनिवारयुक्त कृष्णा चतुर्दशी अथवा अष्टमी आदि का निर्देश है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ