अवयव
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अवयव
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 281 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री बलदेव उपाध्याय |
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अवयव, अवयवी 'अवयव' का अर्थ है अंग और 'अवयवी' का अर्थ है अंगी। बौद्धों और नैयायिकों में इस विषय को लेकर गहरा मतभेद चलता है। बौद्धों के मत में द्रव्य (घट आदि) अपने उत्पादक परमाणुओं का समूह मात्र है अर्थात् वह अवयवों का पुंज है। न्यायमत में अवयवों से उत्पन्न होनेवाला अवयवी एक स्वतंत्र पदार्थ है, अवयवों का संघात मात्र नहीं। बौद्धों की मान्यता है कि परमाणु पुंज होने पर घट को प्रत्यक्ष असिद्ध नहीं माना जा सकता। अकेला परमाणु अप्रत्यक्ष भले ही हो, परंतु उसका समूह कथमपि अप्रत्यक्ष नहीं हो सकता। जैसे दूर पर स्थित एक केश भले ही प्रत्यक्ष न हो, परंतु जब केशों का समूह हमारे नेत्रों के सामने प्रस्तुत होता है, तब उसका प्रत्यक्ष अवश्यमेव सिद्ध होता है। व्यवहार में इसका प्रत्यक्ष दृष्टांत मिलता है। न्याय इसका जोरदार खंडन करता है। उसकी शक्ति है कि केश और परमाणु को हम एक कोटि में नहीं रख सकते। परमाणु अतीेंद्रिय है इसलिए उसका संघात भी उसी प्रकार अतींद्रिय अतएव प्रत्यक्ष के अयोग्य है। केश तो अतींद्य्राि नहीं है, क्योंकि समीप लाने पर एक केश का भी प्रत्यक्ष हो सकता है। अदृश्य परमाणुपुंज से दृश्य परमाणुपुंज का उदय मानना भी एकदम युक्तिहीन है, क्योंकि अदृश्य दृश्य का उत्पादक कभी नहीं हो सकता। इस प्रकार यदि घड़ा परमाणुओं अर्थात् अवयवों का ही समूह होता (जैसा बौद्ध मानते हैं), तो उसका प्रत्यक्ष कभी हो ही नहीं सकता। परंतु घट का प्रत्यक्ष तो होता ही है। अतएव अवयवों से भिन्न तथा स्वतंत्र अवयवी का अस्तित्व मानना ही युक्तियुक्त मत है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ