असंशयवाद
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असंशयवाद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 298 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डा० श्रीकृष्ण सक्सेना |
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असंशयवाद (ऐग्नास्टिसिज़्म) एक धार्मिक आंदोलन, जो दूसरी सदी के आरंभ में प्रारंभ हुआ, उस सदी के मध्यकाल में अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँचा और फिर क्षीण हो चला। वैसे इसकी विभिन्न शाखा प्रशाखाएँ चतुर्थ शताब्दी तक जड़ जमाए रहीं। यह बात भी स्मरणीय है कि कई महत्वपूर्ण असंशयवादी मान्यताएँ ईसाई मत का आरंभ होने से पूर्व ही विकसित हो चुकी थीं।
'असंशय' शब्द के प्रयोग से असंशवादियों को बुद्धिवाद का समर्थक नहीं समझना चाहए। वे बद्धिवादी नहीं, दैवी अनुभूतिवादी थे। असंशयवादी संप्रदाय अपने को एक ऐसे रहस्मय ज्ञान से युक्त समझता था जो कहीं अन्यत्र उपलब्ध नहीं तथा जिसकी प्राप्ति वैज्ञानिक विचार विमर्श द्वारा नहीं वरन् दैवी अनुभूति से ही संभव है। उनका कहना है कि यह ज्ञान स्वयं मुक्ति प्रदान करनेवाला है और उसके सच्चे अनुयायियों से ही किस रहस्यमय ढंग से प्राप्त होता है। संक्षेप में, सभी असंशयवादी अपने समस्त आचार विचार और प्रकार में धार्मिक रहस्यवादियों की श्रेणी में आते हैं। वे सभी गूढ़ तत्वज्ञान का दावा करते हैं। वे मृत्युपरांत जीव की सद्गति में विश्वास करते हैं और उस मुक्ति प्रदान करनेवाले प्रभु की उपासना करते हैं जो अपने उपासकों के लिए स्वयं मानव रूप में एक आदर्श मार्ग बता गया है।
अन्य रहस्यावादी धर्मों की भांति असंशयवाद में भी मंत्रतंत्र, विधिसंस्कारादि का महत्वपूर्ण स्थान है। पवित्र चिन्हों, नामों तथा सूत्रों का स्थान सर्वोच्च है। असंशयवादी संप्रदायों के अनुसार मृत्युपरांत जीव जब सर्वोच्च स्वर्ग के मार्ग पर अग्रसर होता है तो निम्न कोटि के देव एवं शैतान बाधा उपस्थित करते हैं जिनसे छुटकारा तभी संभव है जब वह शैतानों के नाम स्मरण रखे, पवित्र मंत्रों का सही उच्चारण करे, शुभ चिह्नों का प्रयोग करे या पवित्र तैलों से अभिषिक्त हो। मृत्युपरांत सद्गति के लिए असंशवादियों के अनुसार ये अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकताएँ हैं। मानव शरीर में अवतरित स्वयं मुक्तिप्रदाता को भी पुन: स्वर्गारोहण के लिए इन मंत्रादि की आवश्यकता हुई थी।
असंशयवाद एक विशेष प्रकार के द्वैत सिद्धांत पर आधारित है। अच्छाई और बुराई दोनों एक दूसरे के प्रतिपक्षी हैं। प्रथम दैवी जगत् का और द्वितीय भौतिक जगत् का प्रतिनिधि है। भौतिक जगत् बुराइयों की जड़, विरोधी शक्तियों का संघर्षस्थल है। असंशयवादी भौतिक जगत् का निर्माण उन सात शक्तियों द्वारा मानते हैं जो उनपर शासन करती हैं। इन सात शक्तियों के स्रोत सूर्य, चंद्र और पांच नक्षत्र हैं।
असंशयवादियों की यह प्रमुख मान्यता है कि जगत् की सृष्टि के पूर्व एक आदिपुरुष था, परम साधु पुरुष, जो संसार में विभिन्न रूपों में विचरता और अपने को किसी एक असंशयवादी में व्यक्त करता है। वह उस दैवी शक्ति का प्रतीक है जो सबकी उन्नति के लिए भौतिक जगत् में अंधकार में उतरकर विश्वविकास का नाटकीय दृश्य प्रस्तुत करती है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं-ई.एफ. स्काट : नास्टिसिज्म ऐंड वैलेंशिऐनिज्म इन हेस्टिंग्ज़; एनसाइक्लोपीडिया ऑव रेलिजन ऐंड ऐथिक्स; एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में 'नास्टिसिज़्म' शीर्षक निबंध।