आंतिस्थेनीज़

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
आंतिस्थेनीज़
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 327
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. भोलानाथ शर्मा


आंतिस्थेनीज़ (लगभग ई.पू.455-360) एथेंस के दार्शनिक। आरंभ में इन्होंने गौर्गियास्‌, एक हिप्पियास्‌ और प्रौदिकस्‌ से शिक्षा प्राप्त की, पर अंत में ये सुकरात के भक्त बन गए। किनोसागस्‌ नामक स्थान पर इन्होंने अपना विद्यालय स्थापित किया जहाँ पर प्राय: निर्धन लोगों को दर्शन की शिक्षा दी जाती थी। ये सुख का आधार सदवृति (अरेते) को और सदवृति का आधार ज्ञान को मानते थे। ये यह भी मानते थे कि सदवृति की शिक्षा दी जा सकती है और इसके लिए शब्दों के अर्थो का अनुसंधान अपेक्षित है। ये अधिकांश सुखों को प्रवंचक मानते थे। ये कहते थे कि केवल श्रमोत्पादित सुख स्थायी हैं। अतएव ये इच्छाओं को सीमित करने का उपदेश देते थे। ये एक लबादा पहने रहते थे और एक दंड और खरी अपने पास रखते थे। इनके अनुयायी भी ऐसा ही करने लगे।






टीका टिप्पणी और संदर्भ