आइसबर्ग
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आइसबर्ग
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 335 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. राधिकानाथ माथुर |
आइसबर्ग अथवा हिमप्लवा हिम का बहता हुआ पिंड है जो किसी हिमनदी या ध्रुवीय हिमस्तर से विच्छिन्न हो जाता है। इसे हिमगिरि भी कहते हैं। हिमगिरि समुद्री धाराओं के अनुरूप प्रवाहित होते हैं। ये प्राय: ध्रुवी देशों से बहकर आते हैं और कभी कभी इन प्रदेशों से बहुत दूर तक पहुँच जाते हैं। जब हिमनदी समुद्र में प्रवेश करती है तब उसका खंडन हो जाता है और हिम के विच्छिन्न खंड हिमगिरि के रूप में बहने लगते हैं। इन हिमगिरियों का केवल भाग जल के ऊपर दृष्टिगोचर होता है। शेष पानी के भीतर रहता है। हिमगिरि प्राय: अपने साथ शिलाखंड़ों को भी ले चलते हैं और पिघलने पर इन्हें समुद्रनितल पर निक्षेपित करते हैं।
हिमगिरियों की अत्यधिक बहुलता 42° 45' उत्तरी आक्षांश और 47° 52' पुर्वी देशांतर पर है जहाँ लैब्रेडोर की ठंडी धारा गल्फस्ट्रीम नामक उष्ण धारा से मिलती है। गर्म और ठंडी धाराओं के संगम से यहाँ अत्यधिक कुहरा उत्पन्न होता है, जिससे समुद्री यातायात में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। हिमगिरि बहुधा अत्यंत विशालकाय होते हैं और उनसे जहाज का टकराना भयावह होता है। लगभग पूर्वोक्त स्थान पर अप्रैल, 1912 ई. में टाइटैनिक नामक बहुत बड़ा और एकदम नया जहाज एक विशाल हिमगिरि को छूता हुआ निकल गया, जिससे जहाज का पार्श्व चिर गया और कुछ घंटों में जहाज जलमग्न हो गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ