आकांक्षा
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आकांक्षा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 337 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. रामचंद्र पांडेय |
आकांक्षा अभाव से उत्पन्न इच्छा। साहित्यशास्त्र, व्याकरण तथा दर्शन में इस शब्द का एक विशिष्ट अर्थ है। वाक्य से अर्थज्ञान करने के लिए वाक्य में आए हुए शब्दों का परस्पर संबंध होना चाहिए। यह संबंध ही ऐसा तत्व है जिससे वाक्य की एकता बनी रहती है। अलग शब्द का प्रयोग करने पर उस शब्द के बारे में उत्सकुता होती है और तभी समाधान होता है जब उस शब्द को सुसंबंधित वाक्य का अंग बना देते हैं। अत: अपूर्ण प्रयोग से श्रोता के मन में जो उत्सुकता होती है उसे आकांक्षा कहते हैं और जिस शब्द से आकांक्षा उत्पन्न होती है उसे साकांक्ष कहते हैं। साकांक्ष शब्दों से पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति नहीं होती और निराकांक्ष शब्दों के समूह से सार्थक वाक्य नहीं बनता। अत: वाक्य साकांक्ष शब्दों का एक निराकांक्ष समूह कहा जा सकता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ