आकृति
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आकृति
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 344 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. बलदेव उपाध्याय |
आकृति पतंजलि तथा गौतम ने 'आकृति' की परिभाषा समान शब्दों में की है-आकृतिग्रहण जाति: (महाभाष्य); आकृतिर्जातिलिंगाख्या (न्यायसूत्र), जिसका अर्थ यह है कि आकृति या आकार का तात्पर्य अवयव के संस्थानविशेष से है और जाति का निर्णय आकृति के द्वारा ही होता है। सास्ना (गलकंबल), लांगूल, खुर, विषाण आदि गोत्व जाति के लिंग माने जाते हैं। उन्हें देखकर किसी पशु को हम गाय मानने के लिए बाध्य हाते हैं। शब्द के शक्य अर्थ के विचारप्रसंग में कतिपय आचार्य आकृति ही शब्द का अर्थ मानते थे। महाभाष्य में इसका उल्लेख है। गौतम ने व्यक्ति तथा जाति के समान ही आकृति को वाक्यार्थ माननेवालों के मत का खंडन कर इन तीनों के समुच्चय को ही पद का अर्थ माना है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जात्याकृतिव्यक्तयस्तु पदार्था:; न्यायसूत्र-2|2|63