आक्सिम
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आक्सिम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 345 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. रामदास तिवारी |
आक्सिम ऐलडिहाइडों तथा कीटोनों पर हाइड्रॉक्सिल-ऐमिन की प्रतिक्रिया सेे यौगिक प्राप्त होते हैं उन्हें आक्सिम कहते हैं। ऐलडिहाड़ों से बने यौगिकों ऐलडॉक्सिम तथा कीटोनों से बने यौगिक कीटॉक्सिम कहलाते हैं। इनके सूत्र निम्नलिख्ति हैं:चित्र:Aksim.gif
सबसे पहला आक्सिम विक्टर मेयर ने सन् 1878 ई. में बनाया था। इसके बाद ऐलडिहाइड तथा कीटोनों के शुद्धिकरण तथा उनकी पहचान में आक्सिमों के महत्व के कारण तथा इन यौगिकों की विन्यास-समावयवता के कारण, रसायनज्ञों ने इनके अध्ययन में विशेष रुचि दिखलाई, जिसके फलस्वरूप इनसे संबद्ध इनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान हुए।
ऐलडिहाइडों तथा कीटोनों के शुद्धीकरण तथा पहचान में इनके उपयोग का विशेष कारण यह है कि आक्सिम ठोस अवस्था में मणिभीय तथा जल में अविलेय होते हैं; अत: इनको शुद्ध अवस्था में प्राप्त किया जा सकता है। हाइड्रोक्लोरिक या गंधकाम्ल के विलयन के साथ गरम करने से आक्सिमों का जलविश्लेषण हो जाता है। इसके फलस्वरूप ऐलडिहाइड या कीटोन स्वतंत्र अवस्था में पुन: प्राप्त हो जाते हैं।
आक्सिमों के अपचयन से प्राथमिक ऐमिन प्राप्त हाते हैं अत:>का>औको>का-नाहा में परिवर्तित करने में इनका प्रयोग होता है। ऐलडाक्सिम ऐसिड क्लोराइड द्वारा निर्जलित किए जा सकते हैं जिससेचित्र:Aksim-2.gif
यौगिक मू-काºना में परिवर्तित हो जाते हैं।
कुछ आक्सिम, धात्वीय तत्वों के साथ संयुक्त होकर, स्थायी सवर्ग (कोऑरडिनेट) यौगिक बनाते हैं। लगभग एक समान गुणवाले और संबंधति विविध तत्वों से इस प्रकार बननेवाले यौगिकों की विलेयता एक दूसरे से भिन्न होती है। इस कारण, वैश्लेषिक रसायन में, इन आक्सिमों का बड़ा महत्व है। सैलिसिल ऐलडाक्सिम अनेक धातुओं से इस प्रकार के यौगिक बनाता है, परंतु तांबे के साथ बने यौगिक को छोड़कर अन्य धातुओं से बने सभी यौगिक तनु (डाइल्यूट) ऐसीटिक अम्ल में विलए हैं। ताँबे के साथ बना यौगिक हरिताभपीत रंग का एक चूर्ण सा होता है और इसे110° सें. पर सुखाकर स्थायी रखा जा सकता है। अत: इफ्ऱेम ने इस आक्सिम का अन्य तत्वों से ताँबे के पृथक्करण तथा उसके परिमापन के लिए उपयोग करना अच्छा बतलाया है। इसी प्रकार डाईमेथिल ग्लाइक्सिम, जो डाइकीटोन-डाई-ऐसिटिल का डाइ-आक्सिम है, अनेक धातुओं के साथ संकीर्ण यौगिक बनाता है, जिनमें से केवल निकल तथा पलेडियम से बने यौगिक तनु अम्लों तथा तनु क्षार विलयनों में अविलेय होते हैं। अत: निकल तथा पलेडियम के परिमापन तथा निकल को कोबाल्ट से पूर्णत: पृथक् करने में इस आक्सिम का बहुत उपयोग होता है। बीटा नैप्थोक्वीनोन का एक आक्सिम कोबाल्ट के साथ इसी प्रकार का अविलेय यौगिक बनाता है, जिससे कोबाल्ट के परिमापन में इसका उपयोग होता है।
आक्सिमों की विन्यास-समावयवता-विन्यास रसायन के विकास में आक्सिमों का महत्व कुछ कम नहीं हे। सन् 1883 ई. में हान्स गोल्डस्मिट ने ज्ञात किया कि बेंजिल का द्वि-आक्सिम दो रूपों में पाया जाता है, फिर सन् 1889 ई. में विक्टर मेयर ने एक तीसरा रूप भी ज्ञात किया। उसी वर्ष बेकमैन ने बताया कि बेंजैलडीहाइड का भी दो रूपों में पाया जाता है। वांट हाफ ने>का = का'>वाले यौगिकों की ज्यामितीय समावयवता पूर्ण रूप से सिद्ध कर दी थी; अत: आर्थर हाँस तथा ऐल्फ्रड़े वर्नर ने इन सिद्धांतों को>का = ना-वाले यौगिकों में लगाकर यह दिखलया कि आक्सिमों के समावयव ज्यामितीय समावयव हैं। उनके अनुसार ऐल्डीहाइडों तथा असममितीय कीटोनों के आक्सिम दो रूपों में पाए जाएँगे जिन्हें इस प्रकार लिख सकते हैं:चित्र:Aksim-3.gif
यह समावयवता ठीक उसी प्रकार की है जैसी मैलिक तथा फ्यूमेरिक अम्ल की>का = का<पर। कीटोनों में यह केवल असममितीय कोटोनों में संभव है, क्योंकि मू तथा मू' के एक हो जाने से फिर इन दो रूपों में कोई अंतर नहीं रह जाता। इसके आधार पर बेंजिल द्वि--आक्सिम के रूप भी लिखे जा सकते हैं।चित्र:Aksim-4.gif
कीटोनों के आक्सिमों की फासफोरस पेंटाक्साइड के साथ ईथर में प्रतिक्रिया करने से जो पदार्थ मिलता है उसपर जल की प्रतिक्रिया से प्रतिस्थापित ऐसिड--ऐमाइड प्राप्त होते हैं। इस क्रिया को बेकमैन का रूपांतरण कहते हैं। इस क्रिया में मूलकों का परिवर्तन होता है। जो मूलक पहले कार्बन के साथ संयुक्त था, अब वह नाइट्रोजन के साथ संयुक्त मूलक से स्थानांतरण कर लेता है।
यह स्पष्ट है कि दो समावयवी आक्सिमों में से तोचित्र:Aksim-5.gif
मू' काऔनाहामू मिलेगा, परंतुचित्र:Aksim-6.gif
से मूकाऔनाहमू' मिलेगा। इन पदार्थों का इस प्रकार बेकमैन रूपांतरण के फलस्वरूप बनना इस बात की पुष्टि करता है कि समावयवी आक्सिमों की रचना तो एक सी है, परंतु उसकी समावयवता मूलकों के तल में विभिन्न प्रकार से स्थित होने के कारण होती है।
इसके बाद इन बातों की पुष्टि करने के लिए हाँस, बर्नेर, डब्ल्यू.एच. मिल्स, माइसेनहाइमर, टी.डब्ल्यू.जे. टेलर तथा एल.एफ. सटन आदि रसायनज्ञों ने अनेक प्रयोगों के आधार पर समय-समय पर अपने विचार प्रकट किए हैं, किंतु आक्सिमों के संबंध में अभी तक बहुत सी बातें नहीं निश्चित हो पाई हैं।[१]
टिप्पणी: औ = आक्सीजन, का = कार्बन , ना = नाइट्रोजन, हा = हाइड्रोजन, म = मूलक (रैडिकल), मू' = अन्य मूलक।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-सिडविक: केमिस्ट्री ऑव नाइट्रोजन कंपाउंड्स; जे.सी. थॉर्प: डिक्शनरी ऑव ऐप्लाएड केमिस्ट्री।