आदम
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आदम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 367 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रेडरेंड कामिल्क बुल्के |
आदम बाइबिल के प्रथम पृष्ठों पर कहा गया है कि ईश्वर ने प्रथम मनुष्य आदम को अपना प्रतिरूप बनाया था। इब्रानी भाषा में 'आदामा' का अर्थ है-लाल मिट्टी में बना हुआ। मनुष्य का शरीर मिट्टी से बनता है और अंत में मिट्टी में ही मिल जाता है, अंत: प्रथम मनुष्य का नाम आदम ही रखा गया। आदम की सृष्टि कब, कहाँ और कैसे हुई, इसके विषय में बाइबिल कोई निश्चित सूचना नहीं देती। आधुनिक विज्ञान इसके संबंध में निरंतर नई धारणाओं का प्रतिपादन करता रहता है। आदम के पूर्व उपमनुष्य या अर्धमनुष्य थे अथवा नहीं, इसके संबंध में भी बाइबिल में कोई लेख नहीं मिलता। इतना ही ज्ञात होता है कि आदम की आत्मा किसी भौतिक तत्व से नहीं बनी और आजकल जितने भी मनुष्य पृथ्वी पर हैं वे सबके सब आदम के वंशज हैं। प्राचीन मध्यपूर्वी शैली के अनुसार बाइबिल सृष्टि के वर्णन में प्रतीकों का साहारा लेती है। उन प्रतीकों का अक्षरश: समझने से भ्रांति उत्पन्न होगी। बाइबिल का दृष्टिकोण वैज्ञानिक न होकर धार्मिक है। आदम ने ईश्वर के आदेश का उल्लंघन किया ओर ईश्वर की मित्रता खो बैठा। प्रतीकात्मक भाषा में इसके विषय में कहा गया है-आदम ने वर्जित फल खाया और इसके फलस्वरूप उसे अदन की वाटिका से निर्वासित किया गया। ईसा ने मनुष्य और ईश्वर की मित्रता का पुनरुद्धार किया, अत: बाइबिल में ईसा को नवीन अथवा द्वितीय आदम कहा गया है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-कैथोलिक कमेंटरी ऑव होली स्क्रिप्चर, लंडन, 1953; ब्रूसवाटर: ए पाथ थ्राू जेनेसिस, लंडन, 1955।