आदिपुराण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
आदिपुराण
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 369 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. बलदेव उपाध्याय |
आदिपुराण जैनधर्म का एक प्रख्यात पुराण। जैनधर्म के अनुसार 63 महापुरुष बड़े ही प्रतिभाशाली, धर्मप्रवर्तक तथा चरित्रसंपन्न माने जाते हैं और इसीलिए ये 'शलाकापुरुष' के नाम से विख्यात हैं। ये 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव तथा नौ बलदेव (या बलभद्र) हैं। इन शलाकापुरुषों के जीवनप्रतिपादक ग्रंथों को श्वेतांबर लोग 'चरित्र' तथा दिगंबर लोग 'पुराण' कहते हैं। आचार्य जिनसेन ने इन समग्र महापुरुषों की जीवनी काव्यशैली में संस्कृत में लिखने के विचार से इस 'महापुराण' का आरंभ किया, परंतु ग्रंथ की समाप्ति से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। फलत: अवशिष्ट भाग को उनके शिष्य आचार्य गुणभद्र ने समाप्त किया। ग्रंथ के प्रथम भाग में 48 पर्व और 12 सहस्र श्लोक हैं जिनमें आद्य तीर्थकर ऋषभनाथ की जीवनी निबद्ध है और इसलिए 'महापुराण' का प्रथमार्ध 'आदिपुराण' तथा उत्तरार्ध उत्तरपुराण के नाम से विख्यात है। आदिपुराण के भी केवल 42 पर्व पूर्ण रूप से तथा 43वें पर्व के केवल तीन श्लोक आचार्य जिनसेन की रचना हैं और अंतिम पर्व (1620 श्लोक) गुणभद्र की कृति है। इस प्रकार आदि पुराण के 10,380 श्लोकों के कर्ता जिनसेन स्वामी हैं। हरिवंश पुराण के रचयिता जिनसेन आदिपुराण के कर्ता से भिन्न तथा बाद के हैं, क्योंकि जिनसेन स्वामी की स्तुति अपने ग्रंथ के मंगलश्लोक में की है।
आदिपुराण कवि की अंतिम रचना है। जिनसेन का लगभग श.सं. 770 (=848 ई.) में स्वर्गवास हुआ। राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष (प्रथम) का वह राज्यकाल था। फलत: आदिपुराण की रचना का काल नवीं शताब्दी का मध्य भाग है। यह ग्रंथ काव्य की रोचक शैली में लिखा गया है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-नाथूराम प्रेमी : जैन साहित्य और इतिहास, बंबई 1942; डा. विंटरनित्स : हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, द्वतीय खंड, कलकत्ता, 1933।