आद्योद्भिद
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आद्योद्भिद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 372 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भी.शं.त्रि. |
आद्योद्भिद (प्रोटोफ़ाइटा) ऐसे एक या बहुकोशीय जीव हैं जो पौधों की तरह अपना भोजन तरल रूप में ही ग्रहण करते हैं। इनको देखन से अनुमान किया जा सकता है कि वानस्पतिक सृष्टि का आदि रूप कैसा रहा होगा। कुछ सामान्य शैवाल (ऐलजी) भी इसी वर्ग में आते हैं शैवाल और एककोशिकी प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) दोनों एक साथ एक-कोशजीव (प्रोटिस्टा) वर्ग में रखे जाते हैं। ये संपूर्ण जीवनसृष्टि के आदिरूप माने जाते हें। एक कोशिनों के कई वर्ग हैं, कुछ ऐसे हैं जो तरल रूप से भोजन लेते हैं, कुछ ऐसे हैं जो प्राणियों की तरह ठोस रूप में तथा कुछ ऐसे भी होते हैं जो दोनों प्रकार से भोजन प्राप्त कर सकते हैं। अंतिम रूपवाले जीव विचारक के सुविधानुसार पौधों या जंतुओं दोनों में से किसी भी श्रेणी में रखे जा सकते हैं। अभी तक इनकी कोई भी परिदृढ परिभाषा संभव नहीं हो पाई है।
आद्याद्भिद वर्ग में कार्बन-संश्लेषण (फ़ोटोसिंथेसिस) क्रिया होती है। यह क्रिया इन पौधों में पर्णहरिम ओर कभी कभी अन्य रंगों की सहायता से होती है। इस क्रिया में कार्बन डाइ-आक्साइड और पानी से धूप की उपस्थिति में जटिल कारबनिक यौगिक (जैसे स्टार्च, वसा इत्यादि) बनते हैं। आद्योद्भिद के वर्ग अपने-अपने रंगों के आधार पर पहचाने जा सकते हैं। एककोशिक आद्योद्भिद चर (गतिशील, मोटिल) होते हैं तथा इनके पक्ष्म होते हैं। पक्ष्मों की संख्या ओर उनका विन्यास प्रत्येक वर्ग के लिए निश्चित होता है। प्राय: प्रत्येक वर्ग में अचर रूप भी होते हैं जो एक या बहुकोशिकीय होते हैं।
आद्योद्भिद में प्रजनन अत्यंत साधारण रीति से होता है। बहुधा एककोशिका के, चाहे वह चर अवस्था में ही क्यों न हों, दो भाग हो जाते हैं। स्थायी रूपों में प्रजनन चर बीजाणु (जूस्पोर्स) से भी होता है। मिक्सोफ़ापइसी वर्ग में लैंगिक भेद नहीं होता, परंतु अधिकतर वर्गो के प्राय: अधिक विकसित रूपों में लैंगिक भेद होता है। क्लोरोफ़िसिई में विषम लैंगिक प्रजनन होता है। आद्योद्भिद की बहुत सी प्रजातियाँ, जो क्लोरोफ़िसिई, मिक्सीफ़िसिई आदि में शामिल हैं, स्थायी होती हैं ओर इन्हें सामान्य रूप से शैवाल ही कहा जाता है। इसके विपरीत, शैवालों में कुछ ऐसे भी आकार हैं जो आद्योद्भिद रूप से अधिक विकसित हैं ओर इनके प्राचीन रूपों का पता भी नहीं मिलता। आद्योद्भिद के ऐसे रूप जो स्वचालित होते हैं तथा जिनमें कोशिकाभित्ति नहीं होती, शैवालों से पृथक् वर्ग में रखे जाते हैं। इस वर्ग को कशांग वर्ग (फ़्लैजेलेटा) कहते हैं (कश = चाबुक)। ये प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) के निकट हैं परतु ऐसा विभाजन कृत्रिम तथा अनुचित प्रतीत होता है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-एफ़.ई.फ्रटज: प्रसिडेंशियल ऐड्रेस टुसेक्शन के, ब्रिटिश ऐसोसिएशन फ़ार ऐडवांसमेंट ऑव साएँस (1927)।