आफ़्रोदीती
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आफ़्रोदीती
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 388 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. भोलाशंकर उपाध्याय |
आफ़्रोदीती प्रणय और विवाह की ग्रीक देवी, भारतीय रति की समानांतर। ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार उसकी उत्पत्ति समुद्र के नीले फेन से हुई। पुनर्जागरणकाल के प्रसिद्ध इतालीय चित्रकार बोतीचेली का एक अत्यंत सुंदर चित्र आफ्ऱोदीती के इस सागरजन्म को अभिव्यक्त करता है। सागर से जन्म लेने के कारण ही देवी नाविकों की विशेष आराध्या बन गई थी। उसी का रोम की संस्कृति में वीनस नाम पड़ा। पहले उसका संबंध युद्ध से भी रहा था, इससे उसकी कुछ प्राचीनतम मूर्तियाँ सामरिक वेशभूषा में निर्मित हैं।
आफ्ऱोदीती को मेष, अज और कबूतर बड़े प्रिय हैं और उसका प्रतिनिधान वे ही अनेक बार पौराणिक कथाओं में करते हैं। देवी की मेखला विशेष चमत्कारी मानी जाती थी और उसे वह अपने प्रणयियों को अपना प्रसाद घोषित करने के लिए जब तब दे दिया करती थी। उसके प्रणयी अनेकानेक देव तो थे ही, अपने प्रेमदान से उसने मानवों को भी भाग्यवान् किया। उसके संबंध की असंख्य कथाओं में एक उस गड़रिए अदोनिस् की कथा है जिसे आफ्ऱोदीती ने अपने प्रणय का अधिकारी बनाया था। अदोनिस् को एक दिन आखेट के समय वन्य शूकर ने मार डाला, फिर तो आफ्ऱदीती ने इतना विलाप किया कि देवताओं का हिया भी पसीज गया और उन्होंने उसके प्रिय को नवजीवन दान दिया। निश्चय यह हुआ कि अदोनिस् वसंत आदि ऋतुओं में छह महीने आफ्ऱोदीती के साथ स्वर्ग में रहेगा, शेष मास वह पाताल में बिताएगा। यह कथा मदनदहन, सतीविलाप और कामदेव के पुनर्जीवन की ग्रीक रूपांतर सा प्रस्तुत करती है।
आफ़ोदीती की कथा और पूजा का आरंभ विद्वान् फ़िनीकी देवी अस्तार्तें से मानते हैं जो एशियाई धर्मों से संबंध रखती थी और जिसका प्रचार फ़िनीकी सौदागरों ने पीछे ग्रीस के तटवर्ती द्वीपों में किया। कला में इस देवी का अनेकधा निरूपण हुआ है; उसकी अनेक अदभुत् मूर्तियाँ आज उपलब्ध हैं। सबसे सुंदर और विख्यात मूर्ति प्रोक्सितीलिज़ की बनाई कारिया में क्नीदस् के मंदिर में प्राचीन काल में स्थापित हुई थी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ