आर्कन

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लेख सूचना
आर्कन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 427
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्रीमती तारा मदन

आर्कन प्राचीन एथेंस में मुख्य प्ररशासक (मैजिस्ट्रेट) संस्था या उसके सदस्य का पद। यह संस्था प्राचीन राजाओं का प्रतिनिधान करती थी, जिनकी निरंकुश शक्ति शनै: शनै: कम होती जा रही थी तथा केवल धार्मिक कार्यो को छोड़ तीन संस्थाओं-पोलीमार्क, आर्कन तथा थेसमोथेतायी-के बीच बँट गई थी।

आर्कन में नौ सदस्य होते थे। आरंभ में यह पद उच्च कुल के व्यक्तियों के ही हाथ में था। सोलन ने इसे प्रजातांत्रिक रूप दिया। विधान के अनुसार बिना झगड़े के सबको समान अवसर प्रदान करने के लिए पहले चारों वर्ग दस दस व्यक्तियों का चुनाव करते थे, फिर उन व्यक्तियों में से नौ आर्कनों का चुनाव होता था। सदस्याें का चुनाव एक वर्ष के लिए उन व्यक्तियों में से होता था जिनकी अवस्था 30 वर्ष से ऊपर हो। जब तक सब नागरिकों की बारी न आ जाए तब तक कोई व्यक्ति चुनाव के लिए दुबारा नहीं खड़ा हो सकता था। पदग्रहण करने से पूर्व सदस्य को योग्यता की परीक्षा में उत्तीर्ण होना आवश्यक था। सफल व्यक्ति को जनता के संमुख ईमानदारी की शपथ लेनी पड़ती थी।

कार्यविधि के पश्चात्‌ सत्यनिष्ठ सदस्य ऐरियोपागस सभा के सदस्य बन जाते थे। यह संस्था कानून की रक्षा करती थी तथा आर्कन के कार्यो पर दृष्टि रखती थी। जनता के साथ दुर्व्यवहार करने पर आर्कन पर महाभियोग लगया जा सकता था। अरस्तु के अनुसार आर्कन का सामुदायिक उत्तरदयित्व सोलन के समय आरंभ हुआ।

सोलन के समय आर्कन कानूनी विषयों पर अंतिम निर्णय भी देती थी, केवल प्राथमिक सुनवाई ही नहीं करती थी। 487 ई. पू. से इसका महत्व कम होता गया तथा कार्य नियमित मात्र ही रह गए।[१]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-ए्व्राीमैन्स एन्साइक्लोपीडिया, प्रथम भाग; इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका, द्वितीय भाग; एल. हीबले: कंपैनियन टु ग्रीक स्टडीज़; अरिस्टोटल: एथीनियन कांस्टिटयूशन।