आर्किमिडिज़
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आर्किमिडिज़
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 428 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भोलानाथ शर्मा |
आर्किमीदिज़ (287-212 ई. पू.), विश्व के महान् गणितज्ञ का जन्म सिसली के सिराक्युज़ नामक स्थान में खगोलशास्त्री फ़ाइडियाज़ के घर 287 ई. पू. में हुआ था। इन्होंने गणित का अध्ययन संभवत: अलैक्ज़ैंड्रिया में किया। गणित को इनकी देन अपूर्व है। इन्होंने यांत्रिकी के 'उत्तोलक (लिवर) के नियमों' का आविष्कार किया। चपटे तलों और भिन्न भिन्न आकृतियों के ठोसों के क्षेत्रफल एवं गुरुत्वकेंद्र निकालने में यह सफल हुए। इन्हीं ने प्राय: समस्त द्रवस्थिति विज्ञान का आविष्कार किया और इसका प्रयोग अनेक प्रकार के प्लवमान पिंडों की साम्यस्थिति ज्ञात करने में किया। इनके अतिरिक्त इन्होंने वक्रीय समतलआकृतियों के क्षेत्रफल एवं वक्रतल से सीमिति ठोसों के घनफल निकालने की व्यापक विधियों की भी खोज की। इनकी विधियों में 2,000 वर्ष पश्चात् आविष्कृत कलन (कैल्क्युलस) की विधियों की झलक थी। इन्होंने युद्धोपयोगी अनेक शस्त्रों की भी रचना की जिनसे 212 ई. पू. के सिराक्युज़ के घेरे के समय रोमनिवासियों को अति क्षति पहुँची। अंत में विजेताओं द्वारा इनका वध कर दिया गया, परंतु सेनानायक मार्सेलुस ने इनकी अपूर्व बुद्धि से प्रभावित होकर इनकी एक समाधि का निर्माण कराया, जिसके ऊपर इनके पूर्व इच्छानुसार बेलन के अंतर्गत खींचे गए एक गोले का चित्र अंकित किया गया था।[१]
ग्रीक भाषा में आर्किमीदिज़ की निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं: (1) पैरी स्फैरास् कै कीलिद्र (गोला और रंभ), (2) कीक्लू मैत्रेसिस् (वृत्त की माप), (3) पैरी कोनोइदेआन् कै स्फैरोइदेओन् (आ-शंकु और आ-गौल), (4) पैरी एलीकोन (कुंतल), (5) पैरी ऐपीपैदोन् इसोरोइओन् ए केंत्रा बारोन् ऐपीपेदोन् (समतल समतौल और आकर्षणकेंद्र), (6) तेत्रागोनिस्मस् पराबोलेस् (परवलय का क्षेत्रफल), (7) पैरी औखूमैनोन् (प्लावी काय), (8) प्साम्मितेस (बालुकारणों की गणना), (9) मेथोदस् (वैज्ञानिक अनुसंधान की पद्वति), (10) लेम्माता (भूमिति संबंधी प्रस्थापनाओं का संग्रह)। इनके अतिरिक्त उनकी कुछ अन्य रचनाओं के केवल नाम मात्र उपलब्ध होते हैं। उनकी एक रचना का नाम पशुसमस्या भी है। आर्किमीदिज़ की सभी रचनाएँ मौलिक और प्रसादगुण से युक्त हैं। वह चलरशिकलन (इंटेग्रल कैल्कुलस) के आविष्कार के समीप तक पहुँच चुके थे। वृत्त की माप के संबंध में भी उनके परिणाम बहुत कुछ संतोषप्रद थे। यद्यपि उन्होंने बहुत से यंत्रों का निर्माण किया था, तथापि उनकी रुचि सैद्वांतिक गवेषणा की ओर अधिक थी।[२]
टीका टिप्पणी और संदर्भ