आर्केलाउस
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आर्केलाउस
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 429 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विश्वरनाथ उपाध्याय |
आर्केलाउस 1. सुकरात के पूर्ववर्ती यूनानी दार्शनिक। इनका समय ई. पू. पाँचवीं शताब्दी है। इनके जन्मस्थान के संबंध में मतभेद है। कोई इनको मिलेतस् का निवासी मानते हैं, कोई एथेंस का। यह अनाक्सागोरस के शिष्य तथा सुकरात के गुरु माने जाते हैं। इनके मत में आद्यमिश्रण से शीत और उष्ण की उत्पत्ति हुई और शीत तथा उष्ण से समस्त प्रजनन और विकास की प्रक्रिया उच्च हुई। पवन भी इनके मत में अत्यंतमहत्वपूर्ण तत्व है। ये जीवों की उत्पत्ति कीचड़ से मानते थे। आर्केलाउस दार्शनिक चिंतन को इयोनिया से एथेंस ले आए। ये अंतिम प्रकृति वादी थे; सुकरात के साथ आचारवादी दर्शन का श्रीगणेश हुआ।[१]
आर्केलाउस 2. हेरोद महान् के पुत्र और जूदा राज्य के उत्तराधिकारी। हेरोद ने पहले अपने दूसरे पुत्र ऐंतीपास को अपना उत्तरधिकारी बनाया था, किंतु अपनी अंतिम वसीयत द्वारा उन्होंने आर्केलाउस को वे सब अधिकार दे दिए जो ऐंतीपास को दिए थे सेना ने उन्हें राजा घोषित कर दिया, किंतु उस समय तक उन्होंने राजा बनना स्वीका नहीं किया जब तक रोम के सम्राट् ओगुस्तन उनके इस दावे को स्वीकार न करें। रोम की यात्रा से पूर्व उन्होंने बड़ी निर्दयता से फारसियों के विद्रोह का दमन किया और 3,000 विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया। ओगुस्तस द्वारा मान्यता प्राप्त होने पर उन्होंने और अधिक दमन के साथ शासन प्रारंभ किया। यहूदी धर्म के नियमों का उल्लंघन करने के कारण सन् 7 ई. में वे पदच्युत करके निर्वासित कर दिए गए।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भोलानाथ शंकर