आर्तेमिस

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लेख सूचना
आर्तेमिस
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 433
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्री भोलानथ शंकर


आर्तेमिस्‌ अथवा आर्तामिस्‌, ग्रीस देश में सर्वत्र पूजी जानेवाली देवी। यह ज्यूस्‌ (सं. द्यौस्‌) और लैतो की पुत्री तथा अपोलो की बहन मानी जाती थीं। पर संभवत: उनकी पूजा और सत्ता हेलेविक जाति से भी अधिक पुरानी थी। जिसने भी उनसे प्रेम करना चाहा, उसको देवी के कोप का भाजन बनना पड़ा। छोटे शिशुओं और अल्पायु प्राणियों पर उनकी विशेष कृपा रहती थी। प्रसववेदना में स्त्रियाँ उनका स्मरण किया करती थीं। स्वयं उनको जन्म देते समय उनकी माता को पीड़ा नहीं हुई थी, अतएव आम विश्वास था कि उनका स्मरण ओर पूजन करनेवाली प्रसूतिकाओं को भी पीड़ा नहीं होती। पर यदि किसी स्त्री की मृत्यु अचानक और बिना पीड़ा के हो जाती थी तो उसका कारण भी आर्तेमिस्‌ को ही माना जाता था। किंतु मुख्यत: तो वह आखेटिका ही थीं और अपनी सेविकाओं तथा शिकारी कुत्तों के साथ पर्वतों और वनों में शिकार खेलना उनकों सबसे अधिक भाता था। वह धनुष बाण धारण कर आखेट करती थीं।

उन्होंने अपने पिता से एक नगर मांगा था, पर उन्होंने उनको पूरेतीस नगर और अन्य अनेक नगरों में भाग प्रदान किए। इसका अर्थ यह है कि उनके मंदिर और पूजास्थान समस्त ग्रीक नगरों में थे। इन मंदिरों में छोटे पशुओं, पक्षियों और विशेषकर बकरों की बलि आर्तेमिस्‌ को अर्तित की जाती थी। कुछ स्थानों पर कुमारिकाएं केसरिया कपड़े पहनकर उनके समक्ष नृत्य करती थीं। हलाए नामक नगर में आर्तेमिस्‌ के समक्ष नरबलि का दिखावा भी किया जाता था और खड्ग द्वारा मनुष्य की गरदन से रक्त की कुछ बूंदें निकाली जाती थीं। फोकाइया स्थान पर यथार्थ नरबलि का होना भी कहा जाता है।

ग्रीक और रोमन इतिहास में आर्तेमिस्‌ के अनेक रूपांतर घटित हुए और अनेक अन्य देवियों के साथ उनका तादात्म्य स्थापित हुआ। वह चंद्रा (सेलेने), कृष्णाकुहू (हेकाते), मधुरा (ब्रितोमार्तिस) आदि अनेक नामों से परिचित हैं।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-फार्नेल: ऑव दि ग्रीक स्टेट्स, 1821; एडिथ हैमिल्टन: माइथॉलौजी, 1854; रॉबर्ट ग्रेवज: द ग्रीक मिथ्स 1855।