आलकोफोरादो मारियाना
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आलकोफोरादो मारियाना
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 448 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्रीमती सरोजिनी चतुर्वेदी |
आलकोफोरादो मारियाना (1640-1723) भिक्षुणी के पत्र की विख्यात पुर्तगाली लेखिका; पुर्तगाल और स्पेन के परस्पर युद्ध के समय सुरक्षा और शिक्षा के विचार से मारियाना को विधुर पिता ने एक कानवेंट में रख दिया। 16 साल की अवस्था में मारियाना भिक्षुणी हो गई। 25 साल की उम्र में फ्रांस के मार्गन मार्क्विस दि कैमिली से मारियाना की भेंट हुई जिससे वह प्रेम करने लगी। चर्चा फैली, अफवाह उड़ी। परिणाम से डरकर वह फ्रांस भाग गया। इस समय भग्नह्दय मारियाना ने जो पांच पत्र लिखें वे साहित्य को अक्षय निधि बन गए। वे मनोवैज्ञानिक आत्मविश्लेषण के अपूर्व उदाहरण हैं। इनमें प्रेमिका के विश्वास, निराशा और संदेह का अद्भुत वर्णन है। पत्रों के यथार्थ चित्रण, वेदना की गहरी अनुभूति, सह्दयता और पूर्ण आत्म समर्पण की प्रशंसा मदाम द सविन्य, ग्लेटस्टन, टेनर, मारिया जैसे उच्च कोटि लेखकों ने की है। अनेक भाषाओं में उनके अनुवाद भी हुए हैं। उनके अनुवाद भी हुए हैं। मारियाना का शेष जीवन कठोर तप और यंत्रणा मेें बीता। रूसो जैसे कुछ लेखकों का कहना था कि ये पत्र मूलत: किसी पुरुष के लिखे हैं, पर अब लेखिका मारियाना की वास्तविकता सिद्ध हो चुकी है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ