आल्किबिआदिज़
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आल्किबिआदिज़
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 448 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री ओंमकारनाथ उपाध्याय |
आल्किबिआदिज़ (ल. 450-404 ई.पू.) एथेंस के जेनरल और राजनीतिज्ञ। संभ्रांत, सुदर्शन और धनाढय। विलासी और अमितव्ययी। सुकरात के प्रशंसक, यद्यपि आचरण में उनके उपदेशों के विरोधी। राजनीति में उन्होंने एथेंस का दूसरे नगरों से सद्भाव कर वार्ता का विरोध किया, यद्यपि एथेंस ने उनकी नीति का पूर्णत: निर्वाह नहीं किया। आल्किबिआदिज़ को नगर ने जेनरल नहीं बनाया और स्पार्ता ने एथेंस के साझेदार नगरों को संघयुद्ध में छिन्न भिन्न कर दिया। सिसिली को जानेवाले पोतसमूह के वे आंशिक अध्यक्ष भी बने पर स्वदेश लौटने पर उन्होंने देखा कि उनके विरुद्ध शत्रुओं ने अभियोग खड़ा कर दिया है, अत: वे अपनी जान बचाकर स्पार्ता भागे। उनकी सलाह से स्पार्ता ने एथेंस के विरुद्ध अपनी जो नई नीति अख्तियार की उससे एथेंस प्राय: नष्ट हो गया। तब आल्किबिआदिज़ लघु एशिया जा पहुँचे। पर शीघ्र वे स्पार्ता का विश्वास भी खो बैठे और उन्होंने अब एथेंस में प्रवेश करने के उपाय ढूंढ़ निकाले। एथेंस की ओर से उन्होंने स्पार्ता के जहाजी बेड़े को बार बार पराजित किया। उनकी विजयों से प्रसन्न होकर एथेंस ने उन्हें स्वदेश लौटने की अनुमति दे दी। परंतु उनकी विजय चिरस्थायी न रह सकी और जब उन्हें नोतियस के युद्ध में अपने मुंह की खानी पड़ी तब उन्होंने फ्रीगिया में शरण ली, जहां स्पार्ता के कुचक्र से उनकी हत्या कर डाली गई। आल्किबिआदिज़ असाधारण आकर्षण और अनंत गुणों से कभी वे स्वदेश के हितों के अनुकूल मत देते, कभी विरुद्ध। फलत: एथेंस के नागरिक कभी उनपर विश्वास न कर सके।
टीका टिप्पणी और संदर्भ